छे तेमां करोतिक्रियानो अभाव छे. अज्ञानीने रागना कर्तृत्वरूप करोतिक्रिया छे तेमां
ज्ञानरूप ज्ञप्तिक्रियानो अभाव छे. ज्ञप्तिक्रिया मोक्षनुं कारण छे, करोतिक्रिया बंधनुं कारण
छे. माटे ज्ञानीने बंधन नथी ने अज्ञानीने बंधन छे.
बंधन नथी, –एने तो मूढताने लीधे पोताना परिणामनुंय भान नथी. अहा, ज्ञानरूप
थाय एनी तो आत्मदशा ज फरी जाय. ए तो भगवानना मार्गमां भळ्यो...
शुद्धस्वरूपनी अनुभूतिमां शुभविकल्पनोय अभाव छे त्यां अशुभनी तो शी वात?
ज्यां रागनी रुचि छे, बाह्यसामग्रीनो अंतरथी प्रेम छे त्यां तो अशुद्धभाव छे, ते तो
बंधनुं ज ठेकाणुं छे. श्री गणधरदेवे तो शुद्ध स्वरूपना अनुभवशीलने अबंध कह्यो छे.
एनुं ज्ञान तो रागादिथी जुदुं ज परिणमे छे. रागथी जुदुं परिणमतुं ज्ञान ते तो बंधनुं
अकारण ज छे, एटले के मोक्षनुं ज कारण छे.
रागनो स्वभाव एक नथी पण जुदो छे. तेमने कर्ता–कर्मपणानो संबंध नथी. अरे, ज्ञान
अने रागने पण ज्यां कर्ताकर्मपणुं नथी त्यां ज्ञान जड शरीरादिनां कार्य करे ए वात तो
क्यां रही? जडथी पण ज्ञाननी भिन्नता जेने न भासे ते रागथी भिन्न ज्ञाननो
अनुभव क्यांथी करे? ने रागथी भिन्न थया विना कर्मबंधन केम अटके?
कारण नथी, माटे ज्ञानीने अबंध कह्या छे. अज्ञानीने रागथी जुदा ज्ञाननो कोई
अनुभव नथी, ते तो मीठासपूर्वक रागमां ज तन्मय वर्ते छे, ते रागनो कर्ता छे ने
तेथी तेने जरूर बंधन थाय छे. जे रागनो करनार छे ते शुद्धस्वरूपनो जाणनार नथी;
जे जाणनार छे ते रागनो करनार नथी. जाणनारने बंधन नथी; रागना करनारने
बंधन छे. आ रीते ज्ञानभाव अने रागनो कर्ताभाव ए बंने भावो एकबीजाथी
विरुद्ध छे. तेना द्वारा ज्ञानी–