Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
शरीरनी क्रिया जीवने मोक्षनुं कारण थाय–ए तो जड–चेतननी एकताबुद्धिरूप
शुद्धस्वरूप शुं छे तेने अनुभवे नहि, रागमां एकत्वबुद्धि छोडे नहि ने
अनंत गुणनी शुद्धताथी परिपूर्ण आत्मा जेवी द्रष्टिमां ने अनुभवमां आव्यो ते
गणधरदेेवे कांई एम नथी कह्युं के जीव गमे तेम स्वच्छंद भावे प्रवर्ते तोपण
तेने बंधन थतुं नथी. प्रमोदथी भरेली निरंकुश प्रवृत्ति तो बंधनुं ज कारण छे. ज्ञानी तो
बधा परभावोथी जुदो पडीने ज्ञानभावरूप थयो छे ते ज्ञानभावने लीधे ज तेने
अबंधपणुं छे. वस्तुनुं स्वरूप तो आवुं छे के शुद्धस्वरूपना अनुभवने लीधे ज्ञानीने
बंधन थतुं नथी, ने रागादि अशुद्धपणुं तो बंधनुं ज कारण छे.