Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४९४ : आत्मधर्म : ३ :
धर्मीनो उपयोग रागथी भिन्न छे एटले तेने विभाव परिणमन नथी, ते पोताना
शुद्धस्वरूपनो अनुभवनशील थयो छे. राग अने चेतना बंनेनुं स्वरूप भिन्न छे; तेना
भिन्न स्वरूपने जे नथी ओळखतो ने एकमेक अनुभवे छे ते अशुद्धपरिणमनने लीधे
नवा कर्मोथी बंधाय छे. अने ज्यां लक्षणभेद वडे उपयोगने रागथी तद्न जुदो जाण्यो
त्यां राग वगरना शुद्धभावपणे ज पोताने अनुभवे छे, ते सम्यग्दर्शन छे, ते
शुद्धपरिणति छे; अने शुद्धपरिणमनने लीधे तेने बंधन थतुं नथी.
सम्यग्द्रष्टि जीव रागादिने परज्ञेय जाणे छे; ते उपयोगने स्व जाणे छे, ने
रागादिने पर जाणे छे. रागथी भिन्न ज्ञानचेतना परिणमी, ते ज्ञानचेतनामां धर्मीने
अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव छे. ते अनुभवमां शुभविकल्पनोय प्रवेश नथी. आवी
शुद्धपरिणति ते ज मोक्षनुं कारण छे. मोक्षनुं कारण बहारमां बीजे क्यांय नथी. ए ज
रीते बंधनुं कारण पण बहारमां बीजुं कोई नथी, जीवनी अशुद्धपरिणति ज बंधनुं
कारण छे.
भाई! तारुं सुख ने तारो आनंद तो तारामां होय के बहार? जेम मीठा
पाणीना दरियामां रहेतुं माछलुं तरसथी तरफडे ने बीजा पासे पाणी मांगे–ते आश्चर्य
छे! भाई, तुं पोते पाणीमां ज रहेलुं छे...ए पाणी पी लेने! बीजे क्यां शोधे छे? तेम
अज्ञानी सुख अने धर्म बहारना साधनमां शोधे छे. पोते ज आनंदना दरियाथी
भरपूर छे, तेने भूलीने सुख माटे बहारमां झांवा नांखे छे, पण माछलाना द्रष्टांते
सन्तो तेने बोध आपे छे के भाई! आनंदनो दरियो तो तारामां ज भर्यो छे, तेमां
डुबकी मारीने एकाग्र था....तो तने आनंदनो अनुभव थशे. बहारमां क्यांय तारो
आनंद नथी. तारा अनंत धर्मो तारामां भर्या छे, ते बहारमां क्यांय नथी; माटे बहार
न शोध. तारामां ज जो.
जेम बहारनी चीज जीवने धर्मनुं कारण नथी, तेम बहारनी चीज जीवने बंधनुं
कारण पण नथी. मन–वचन–काया, चेतन–अचेतन बाह्य पदार्थो ते बंधनां कारण नथी;
जो ते बंधना कारण होय तो तो राग वगरना जीवनेय बंधन थाय. बंधनुं कारण तो
उपयोगमां रागनी भेळसेळरूप अशुद्धपरिणति ज छे, बीजुं कोई नहि. धर्मीजीवे
पोताना उपयोगमां वीतरागी स्वभावने ज अपनाव्यो छे, रागने जुदो जाण्यो छे,
एटले उपयोगमां तेेने हिंसा नथी, अशुद्धता नथी; आवो जे शुद्ध उपयोग ते ज मोक्षनुं
कारण छे.
ज्यां राग नथी त्यां बंधन केवुं? अने ज्यां राग छे त्यां बंधनुं बीजुं कारण