शुद्धस्वरूपनो अनुभवनशील थयो छे. राग अने चेतना बंनेनुं स्वरूप भिन्न छे; तेना
भिन्न स्वरूपने जे नथी ओळखतो ने एकमेक अनुभवे छे ते अशुद्धपरिणमनने लीधे
नवा कर्मोथी बंधाय छे. अने ज्यां लक्षणभेद वडे उपयोगने रागथी तद्न जुदो जाण्यो
शुद्धपरिणति छे; अने शुद्धपरिणमनने लीधे तेने बंधन थतुं नथी.
अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव छे. ते अनुभवमां शुभविकल्पनोय प्रवेश नथी. आवी
शुद्धपरिणति ते ज मोक्षनुं कारण छे. मोक्षनुं कारण बहारमां बीजे क्यांय नथी. ए ज
रीते बंधनुं कारण पण बहारमां बीजुं कोई नथी, जीवनी अशुद्धपरिणति ज बंधनुं
कारण छे.
छे! भाई, तुं पोते पाणीमां ज रहेलुं छे...ए पाणी पी लेने! बीजे क्यां शोधे छे? तेम
अज्ञानी सुख अने धर्म बहारना साधनमां शोधे छे. पोते ज आनंदना दरियाथी
भरपूर छे, तेने भूलीने सुख माटे बहारमां झांवा नांखे छे, पण माछलाना द्रष्टांते
सन्तो तेने बोध आपे छे के भाई! आनंदनो दरियो तो तारामां ज भर्यो छे, तेमां
डुबकी मारीने एकाग्र था....तो तने आनंदनो अनुभव थशे. बहारमां क्यांय तारो
आनंद नथी. तारा अनंत धर्मो तारामां भर्या छे, ते बहारमां क्यांय नथी; माटे बहार
न शोध. तारामां ज जो.
जो ते बंधना कारण होय तो तो राग वगरना जीवनेय बंधन थाय. बंधनुं कारण तो
उपयोगमां रागनी भेळसेळरूप अशुद्धपरिणति ज छे, बीजुं कोई नहि. धर्मीजीवे
पोताना उपयोगमां वीतरागी स्वभावने ज अपनाव्यो छे, रागने जुदो जाण्यो छे,
एटले उपयोगमां तेेने हिंसा नथी, अशुद्धता नथी; आवो जे शुद्ध उपयोग ते ज मोक्षनुं
कारण छे.