Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
मोक्षना अने बंधना कारणनी ओळखाण
ज्ञान अने राग वच्चेनुं भेदज्ञान
समयसार कळश १६प–६६–६७ उपरना प्रवचनोमांथी
(सोनगढ : वैशाख वद एकमथी चोथ)
ज्ञानी अने अज्ञानीनी परिणतिनी साची
ओळखाण थतां जीवने मोक्षमार्गनुं तथा बंधमार्गनुं
खरूं स्वरूप समजाय छे. बंधनुं कारण शुं छे ने मोक्षनुं
कारण शुं छे–तेनी ओळखाणमां जीवनी भूल छे, तेथी
बंधथी छूटवानो ने मोक्षने साधवानो साचो उपाय पण
ते करतो नथी. ज्ञानी पोतानी केवी परिणति वडे मोक्षने
साधी रह्या छे ने अज्ञानी केवी परिणतिने कारणे
बंधाय छे–ते अहीं समजाव्युं छे. ते समजीने बंधना
कारणरूप अशुद्धता छोडवी अने मोक्षना कारणरूप
शुद्धपरिणति प्रगट करवी–ते मोक्षार्थीनुं प्रयोजन छे.

आत्मा ज्ञानानंदस्वरूप शुद्धवस्तु छे; तेमां उपयोगनी एकतावडे जे
अनुभवनशील थयो छे, रागादिथी भिन्न शुद्धस्वरूपना अनुभवरूप जे परिणम्यो छे
एवा धर्मात्माने बंधन थतुं नथी. बंधनुं कारण बाह्य सामग्री नथी, पण उपयोगनी
अशुद्धता एटले के रागादि साथे एकता ते ज बंधनुं कारण छे.
धर्मी जीव पोताना उपयोगने राग साथे भेळसेळ कर्या वगर शुद्ध आत्माना
आनंदनो अनुभव करवामां उपयोगने जोडे छे. जड पदार्थो जुदा छे, तेने तो कोई जीव
अनुभवतो नथी; अज्ञानी रागना अनुभवमां उपयोगने जोडे छे ते अधर्म अने बंधनुं
कारण छे. ज्ञानी रागथी भिन्न उपयोगने शुद्धपणे अनुभवे छे ते धर्म छे ने ते मोक्षनुं
कारण छे.