Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 45

background image
: १० : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
वस्तुनो स्वभाव भिन्न–भिन्न होवा छतां अज्ञानी पोताना भिन्न ज्ञानने
अनुभवतो नथी, संयोग साथे एकताबुद्धिथी देखनारा जीवो पोताना स्वभावनी
स्वतंत्रताने देखी शकता नथी. चश्मा जड छे, ज्ञान जीवनो भाव छे; त्यां चश्माना
संयोगने जोनार, अने संयोगथी भिन्न पोताना ज्ञानने जे देखतो नथी ते जड–
चेतननी एकत्वबुद्धिथी एम माने छे के चश्माथी ज्ञान थयुं. भाई! चश्माना संयोग
वखतेय ज्ञाननुं परिणमन चश्माने कारणे नहि पण पोताना स्वभावथी ज छे. –आवी
स्वतंत्रताने सर्वज्ञभगवाने अनेकान्तवडे प्रसिद्ध करी छे.
आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे; ते ज्ञान पोताना स्वभावथी ज परिणमतुं थकुं
जगतना सर्व ज्ञेयोने जाणे छे. आ रीते ज्ञानने पर साथे ज्ञाता–ज्ञेयपणुं छे. पण बंनेनुं
परिणमन भिन्न छे. ज्ञान–ज्ञानरूपे रहे छे, ज्ञेयोज्ञेयरूपे रहे छे. ज्ञान कांई ज्ञेयोने
जाणतां तेनी साथे एकमेक थई जतुं नथी. पण अज्ञानी जाणे के हुं ज्ञेयरूप थई गयो
–एम माने छे, तेने अनेकान्तनी खबर नथी. परज्ञेयने लीधे ज्ञान थाय एम जे माने
तेने पण अनेकान्तनी खबर नथी, तेेणे ज्ञानने परज्ञेय साथे एकमेक मान्युं छे, ते
अज्ञानी छे. स्व–परनी एकताबुद्धिरूप एकान्तवडे अज्ञानी ज्यारे नाश पामे छे (एटले
के पोताना भिन्न ज्ञानने भूली जाय छे) त्यारे अनेकान्त तेने ज्ञेयोथी भिन्नता
बतावीने ज्ञाननो अनुभव करावे छे. आवो अनुभव करवो ते अनेकान्तनुं फळ छे.
परज्ञेयोने जाणतां अज्ञानी एम माने छे के तेेने लीधे ज ज्ञान थाय छे; पण
ज्ञेयथी भिन्नपणे ज्ञाननुं स्वाधीन अस्तित्व छे, –आवा पोताना स्वाधीन अस्तित्वने
जाण्या वगर धर्म थाय नहि. अनेकान्तना १४ बोल द्वारा अहीं ज्ञाननुं स्वाधीन
अस्तित्व समजाव्युं छे.
ज्ञानस्वभावी आत्मा द्रव्यपणे एक छे, पण पर्यायमां अनेक ज्ञेयोने जाणवारूप
अनेकाकारपणुं छे. अनेकज्ञेयोने जाणवुं ते तो ज्ञाननुं सामर्थ्य छे, ते कांई दोष नथी.
अनेक ज्ञेयोने जाणतां ज्ञान पण खंडखंडरूप थई गयुं एम अज्ञानीने भ्रम थाय छे, त्यां
द्रव्यस्वभावथी ज्ञाननुं एकरूपपणुं बतावीने अनेकान्त ते भ्रम मटाडे छे. ए ज रीते
सर्वथा एकपणुं मानीने पर्यायना सामर्थ्यने न जाणे तो तेने पर्यायअपेक्षाए अनेकपणुं
बतावीने अनेकान्त तेनो भ्रम मटाडे छे.
मारी पर्यायमां घणा ज्ञेयो जणाय छे तेथी अनेकपणुं छे माटे ते अनेकपणुं
मटाडवा परज्ञेयोना ज्ञानने काढी नांखुं–एम अज्ञानी पोतानी ज्ञानपर्यायने ज छोडी
देवा मांगे छे. पण भाई! परचीज जणाय ते तो तारा ज्ञाननुं सामर्थ्य छे. एकपणुं तथा
अनेकपणुं बंने तारा ज्ञानमां रहेला छे, तेने काढी नांखतां ज्ञान ज नहि रहे. पोताना
स्वभावना आश्रये ज्ञान ज अनेक निर्मळपर्यायोरूपे परिणमे छे.