Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 45

background image
: १४ : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
मिथ्यात्वथी थतुं भावमरण
ते भावमरणना भयंकर दु:ख थी छूटवानो उपाय: भेदज्ञान
(समयसारकलश १६८ थी १७२ उपरना प्रवचनोमांथी)
सोनगढ वैशाख वद ६–७–८ (२४९४)
जगतना जीवो जे भूलने लीधे भावमरण करी रह्या छे ते
भूलनो प्रकार समजावीने अने तेनाथी छूटवानो उपदेश
आपीने वीतरागी सन्तोए जीवोने भावमरणथी उगार्या छे.
भाई! सौथी पहेलां एटलुं नक्क्ी कर के तारुं कार्यक्षेत्र
तारामां ज छे, ताराथी बहारमां तारुं कार्य जरापण नथी. –
आम परथी अत्यंत भिन्नता समजीने तारा निजस्वरूपने तुं
संभाळ.–आ ज भावमरणथी छूटवानो ने परम आनंदनी
प्राप्तिनो उपाय छे.

जगतमां सदाय सर्वे जीवोने जीवन के मरण, साता के असाता संयोग के वियोग
ते पोतपोताना कर्मना उदय अनुसार थाय छे, बीजो माने के हुं तेने करुं–तो ते मात्र तेनुं
अज्ञान छे. अने एवो अज्ञानमय मिथ्याभाव ज (पछी ते शुभ हो के अशुभ–) ते
भावहिंसा छे, अधर्म छे. भाई! सामा जीवनुं आयुष पूरुं थया विना कोई तेने मारवा
समर्थ नथी; सामा जीवनुं आयुष न होय तो कोई तेने जीवाडवा समर्थ नथी; तेना
साताना उदय विना कोई तेने सुख देवा समर्थ नथी, तेना असाताना उदय विना कोई
तेने दुःख देवा समर्थ नथी. आ रीते जीवने पोते करेला भावोना फळअनुसार जीवन–
मरण सुख–दुःख–थाय छे. त्यां बीजो मने जीवाडे–मारे के सुख–दुःख