रूप छे.
परिणमतां अज्ञानभावपणे परिणमे छे–तेनुं नाम मिथ्यात्व छे. मोक्ष तो ज्ञानना
आश्रये थाय छे, ज्ञानरूप शुद्धात्माना अनुभवथी मोक्ष थाय छे, तेने बदले शुभविकल्पने
करवाना अहंकारथी जे शुभने मोक्षनुं साधन माने छे, तेने कहे छे के अरे मूढ!
शुभरागमां एकत्वबुद्धिथी तारा ज्ञानजीवननी हिंसा थाय छे. राग स्वयं बंधभाव छे ते
मोक्षनुं कारण केम होय?
पोताने आधीन न होवा छतां, हुं परने जीवाडुं एवी मिथ्याबुद्धिमां पोतानुं भावमरण
थाय छे. अरे, परने जीवाडवानी बुद्धिमां पोतानुं मरण थाय छे–भावप्राण हणाय छे,
तेने अज्ञानी देखतो नथी. तारा आत्माने ते भावमरणथी बचाववा अने साचुं जीवन
पमाडवा हे जीव! तुं भेदज्ञान कर, भेदज्ञान वडे परथी तारी भिन्नता जाण. भेदज्ञान
वगर भावमरण मटशे नहि.
अनुसार सामा जीवमां नथी थतुं; तारो कोई जीवने मारवानो अभिप्राय होय छतां ते
बची जाय छे, तारो बचाववानो अभिप्राय होय छतां ते मरी जाय छे; ए तो एना
पोताना कारणे थाय छे, तारा कारणे थतुं नथी; छतां तुं कर्तापणुं माने छे ते तारो
मिथ्याभाव छे; ने ते तारो मिथ्याभाव तने दुःखनुं कारण छे. आ जीव दुःखमां पीलाई
रह्यो छे तेमांथी छूटवा माटेनी वात छे. ज्ञानभाव वडे जीव कर्मोथी छूटे छे, अज्ञानभाव
वडे जीव कर्मोथी बंधाय छे; ए सिवाय कोई बीजो तेने बांधनार के छोडनार नथी.