Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
ज्ञाननी महानता एमां नथी के परनां काम करे.
ज्ञाननी महानता एमां नथी के रागादिभाव करे.
ज्ञाननी महानता तो एमां छे के जगतथी भिन्न ने रागादिथी भिन्न पोताना
वीतरागी आनंदस्वरूपने जाणीने तेने अनुभवे.
जेने जगतनुं कांई करवुं नथी, शुभरागनो एक कणियो पण जेनामां नथी एवुं
शांत–अरागी गंभीर ज्ञान छे; आवा ज्ञानस्वरूपे आत्माने न ओळखे त्यांसुधी
पर साथे एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्व मटे नहि; ने मिथ्यात्व मट्या वगर जीवने
सुख थाय नहि.
पोताना आत्मस्वरूपने नहि जाणनार अज्ञानी जीव अज्ञानने लीधे जगतमां
सर्वत्र स्व–परनी एकताबुद्धि करे छे. एक रजकणनुंय कर्तृत्य जेणे मान्युं तेने जगतना
सर्वे पदार्थोमां कर्तृत्वबुद्धि ऊभी ज छे. रागना एक शुभअंशथी पण जेणे लाभ मान्यो,
तेणे सर्वेर् रागने आत्मानुं स्वरूप मान्युं. रागथी जुदो ज्ञानस्वरूप आत्मा तेणे न
अनुभव्यो. परथी भिन्न आत्माने अनुभवे ते परनुं कर्तृत्व केम माने? ते परमां
आत्मबुद्धि केम करे? अरे, आत्माने भूलीने, परमां आत्मबुद्धिथी जीवे संसारमां
अनंतानंत अवतार कर्या...जगतमां बधे ठेकाणे ऊपजी चूक्यो, ने ज्यांज्यां उपज्यो
त्यांत्यां अज्ञानभावे पोतापणुं मान्युं; कीडीना भव वखते पोताने कीडी मानी ने हाथीना
भव वखते ‘हुं हाथी’ एम पोताने हाथी मान्यो; देवना भव वखते पोताने देव मान्यो
ने नारकीना भव वखते आत्माने नारकी मान्यो, सर्वत्र सर्व परभावोमां पोतापणुं
मान्युं पण ए बधाथी जुदो हुं तो ज्ञानस्वभावरूप छुं एवो आत्मअनुभव एकक्षण पण
जीवे न कर्यो. अरे, परमां एकत्वबुद्धिना मोहथी जीव घेलो थईने चारगतिमां भटकी
रह्यो छे, ने अनेक प्रकारना जुठा विकल्पो करी करीने दुःखी थाय छे. ज्यां शुभरागनुं
कर्तृत्व ए पण दुःख छे अशुभनी के जडनी तो वात ज शी? जे पोताना परिणामने
आधीन नथी एवा जगतना पदार्थो पाछळ जीव घेलो बन्यो छे...घेलछाथी तेनुं कर्तृत्व
माने छे...एमां चैतन्यनुं भावमरण छे. भाई! क्षणक्षण आवा भावमरणथी तुं दुःखी
थई रह्यो छे, ए भावमरणना दुःखथी छूटवा माटे वीतरागी सन्तो तने तारुं
चैतन्यजीवन ओळखावे छे, –जेमां रागनो अंश नथी, परनो संबंध नथी; आवा
पोताना चैतन्यस्वभावने जाणवो–मानवो–अनुभववो ते भावमरणथी मुक्त थवानो, ने
परम आनंद पामवानो उपाय छे.