Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४९४ : आत्मधर्म : ३३ :
दस ऊखाणा
अतुल अने भारतीबेने (स.न.ं ३८४–३८५) सुरतथी गुरुदेव प्रत्ये पुष्पांजलि
५ ७९ प्रश्नोत्तर; जोडकणां ने ऊखाणां; एकथी सो सुधीना धार्मिक आंक, तथा कक्को–
एम विपुल साहित्य मोकल्युं छे. (बाळको पोताना वडीलो पासेथी शीखीने के तेमने
पूछीने लखे ए सारी वात छे, पण लखाण तो पोताना ज हाथे लखीने मोकले तो
तेमने विशेष उत्साह अने विशेष लाभ थाय.
(ऊखाणामां जोडणीदोष चलावी लेवामां आव्या छे.)
(१) अक्षर साडापांच छे, प्रसिद्ध भारतमांय, त्रीजे–बीजे ईष्टदेव, एक–बेथी
संभळाय. छेल्लो–बीजो जळमां वसे छे, भारतना छे सन्त. एनुं कह्युं जो
ओळखशो तो पामशो भवनो अन्त.
(२) पहेल–बीजे हेम छे, चार अक्षरनुं धाम; त्रीजो–चोथो दूर्ग छे, कहोजी कयुं ते गाम?
(३) प्रगटी वाणी वीरनी, पंचाक्षरी ए तीर्थ; गौतम ज्यां गणधर थया, कहोजी कयुं ए धाम?
(४) धातकर्मनो क्षय करी, प्रगटयुं ज्ञान अनंत; देह छतां परमातमा...कहोजी कया ते भगवंत?
(५) उपयोग लक्षण जेहनुं, जाणे सौने जेह; पण ईन्द्रिथी जणाय ना, ओळखी काढो तेह?
(६) सत्संगना सेवन थकी जेनी प्राप्ति थाय, एनी प्राप्ति थया पछी जरूर मुक्ति थाय.
एनी प्राप्ति थतां अहो! आनंद उरमां न माय. जो शोधी काढो एहने तो तमने
छे धन्यवाद.
(७) जीवने जीव जाण्यो नहि, गण्युं शरीरने जीव; जेथी बहु दुःखी थयो, कहो कई ए
भूल? दुश्मन छठ्ठा उत्तरनो, जगतमां ए दूष्ट, एने जो हणी नाखशो तो थशो
अहिंसक शूर
(८) जो आत्माने जाणशुं, थईशुं एमां लीन; तो एनुं फळ शुं पामशुं? एनो करो विचार.
(९) आत्माने नहि जाणशो, करशो कदी पुण्यराग; एनुं फळ शुं पामशो? करजो जरा विचार.
(१०) सौथी मोटा देव छे, विचरे अवनिमांय, भरतमां आवे नहि छतां कर्यो परम
उपकार. भक्त एनो भरते वसे, सांभळी एनी वाण. बयानामां बिराजता
कहो कया ए भगवान?
(आवेला ऊखाणाने आधारे आ दश ऊखाणा लख्या छे; तेना उत्तर आ अंकमां अन्यत्र छे.)

साधकजीवो
कहे छे–
अमे भगवानना मार्गमां भळ्‌या छीए,
अमे भगवानना खोळे बेठा छीए.