: १२ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
मोक्षनुं कारण प्रज्ञा
प्रज्ञा एटले शुद्धात्मसन्मुख झुकेली भगवती चेतना
(समयसार कळश १८१ उपरना प्रवचनमांथी)
भगवती प्रज्ञाद्वारा भेदज्ञान करावीने मोक्षमार्ग
खोलनार आ आनंददायक कळश ज्यारे ज्यारे गुरुदेवना
श्रीमुखथी सांभळीए छीए त्यारे एवी ‘ज्ञानचेतना’ना
पुरुषार्थनी तीव्र प्रेरणा जागे छे.
अनादिथी बंधनमां बंधायेला आत्माने कई रीते छोडाववो? छूटकारानुं साधन
शुं? ते रीत आ कळशमां बतावे छे. भेदज्ञान माटे आ अलौकिक श्लोक छे. आत्माने
बंधनथी छूटवानुं साधन आत्मामां छे, आत्माथी जुदुं बीजुं कोई साधन नथी. आत्मा
शुं ने बंध शुं–ए बंनेना भिन्नलक्षणने ओळखीने जे चेतना आत्मस्वभाव तरफ झूकी
ते भगवती चेतना ज बंधनथी छूटवानुं (एटले के मोक्षनुं) साधन छे. रागादि
बंधभावो तो आत्मस्वभावथी जुदा छे; ते कोई पण रागभाव आत्माने मोक्षनुं कारण
थतुं नथी. ते रागभावोने तो आत्माथी भिन्न करवाना छे. रागथी जुदी एवी जे
चेतना (–के जे आत्मानुं स्वलक्षण छे) तेना वडे ज बंधनथी भिन्न आत्मा
अनुभवमां आवे छे; आ रीते चेतनारूप भगवती प्रज्ञा ज मोक्षनुं कारण छे. जीवनुं
पोताना शुद्धस्वरूपे परिणमवुं, ने एवुं परिणमन थतां कर्मनो संबंध छूटी जवो तेनुं
नाम मोक्ष छे. मोह–राग–द्वेषादि अशुद्ध परिणतिरूपे परिणमन थवुं ने कर्मनो संबंध
थवो तेनुं नाम बंध छे. शुद्धपरिणमन एटले शुद्धस्वरूपनो अनुभव; जे ज्ञान वडे आवो
अनुभव थाय ते ज्ञान मोक्षनुं साधन छे. आवो अनुभव थतां शुद्धपरिणमन थयुं
एटले अशुद्धपरिणमन छूटी गयुं ने पुद्गलमां कर्म अवस्था छूटी गई. –शुद्धजीव
पोताना स्वरूपमां रह्यो–ते दशानुं नाम मोक्ष छे. –‘मोक्ष कह्यो निज शुद्धता.’
आवा मोक्षनो उपाय शुं? मोक्ष ते पूर्णशुद्धपरिणमन छे, ने तेनुं कारण पण
शुद्धता ज छे. अशुद्धतानो कोई अंश मोक्षनुं कारण थाय नहि. मोक्षना साधननो बहु
सरस खुलासो आ ‘प्रज्ञाछीणी’ ना श्लोकमां कर्यो छे.
तीक्ष्ण प्रज्ञाछीणी एटले तीखी ज्ञानचेतना, उग्र ज्ञानचेतना; तेने निपुणजीवो
एटले भेदज्ञानमां अत्यंत प्रवीणजीवो, सावधान थईने आत्मा अने बंधनी वच्चेना