अनुभव ते ज मोक्षनुं साधन छे. ज्ञाननी साथे जे रागने भेळवे–तेने शुद्धतानो
अनुभव थतो नथी, भेदज्ञान थतुं नथी, मोक्षमार्ग थतो नथी. शुद्धपरिणमन ते रागथी
रहीने शुद्धने अनुभवी शकाय नहि.
अनंतचतुष्टयरूप छे; ते रागथी सर्वथा जुदुं छे. द्रव्यना स्वभावनी जातनुं परिणमन होय
तेने ज द्रव्यनुं शुद्धपरिणमन कह्युं; रागादि अशुद्धताने द्रव्यनुं शुद्धपरिणमन कहेता नथी. आ
रीते ज्ञानपरिणमन अने रागपरिणमननी सर्वथा भिन्नता छे. रागनो एक्क्ेय अंशज्ञानना
परिणमनमां नथी; ने ज्ञाननो एक्केय अंश रागमां नथी. राग ते शुद्धआत्मानुं परिणमन
ज नथी तो पछी ते आत्मानी शुद्धतानुं साधन केम थाय ? –न ज थाय.
जाण्या वगर जीवे अज्ञानभावथी शुभरागने मोक्षनुं साधन मानीने अनादिकाळथी ते
बंधभावनुं ज सेवन कर्युं छे, एटले मिथ्यात्वने ज सेव्युं छे. रागथी पार एवी
निर्विकल्प अनुभूति मोक्षसाधन छे. ते निर्विकल्प अनुभूति वचनमां आवती नथी, ते
वीतरागपरिणतिनी शी वात? अंतर्मुख थयेलुं स्वसंवेदन ज्ञान आत्माने शुद्धतारूप
परिणमावे छे, ने ते ज मोक्षनुं कारण छे. एकलुं बहारनुं जाणपणुं पण मोक्षनुं कारण
नथी त्यां रागनी तो शी वात? ज्ञान केवुं, –के वीतराग परिणतिरूपे परिणमेलुं
स्वसंवेदनज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे.
शुद्धपरिणमन तेने ज होय छे के जेने शुद्धस्वरूपनो अनुभव जरूर होय.
चोथुंगुणस्थान पण न थाय. चोथा गुणस्थानथी ज शुद्धस्वरूपनो अनुभव छे,
शुद्धपरिणमन छे, मोक्षमार्ग छे; तेने अंतरात्मा कह्या छे. चोथा गुणस्थाने शुद्धस्वरूपनो
अनुभव होवानी जे ना पाडे तेने अनुभवदशानी के चोथागुणस्थाननी खबर नथी,
तेने मोक्षमार्गनी खबर नथी.