: २२ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
मोक्षमार्ग एटले अतीन्द्रिय सुखनो अनुभव
(धर्मात्मानी मोक्षसाधनानुं उत्तम वर्णन)
(समयसार–कलश : १९०–१९१)
निर्विकल्प ज्ञान–आनंदस्वरूप आत्मा तेना अनुभवरूप शुद्धपरिणति ते ज
मोक्षमार्ग छे. सम्यग्द्रष्टि जीवो अशुभ अने शुभ बंनेथी पार थईने अतीन्द्रियसुखना
अनुभवसहित मोक्षमार्गने साधे छे. मोक्षमार्गमां शुद्धस्वभावना अनुभवनो ज उद्यम
छे. रागमां रोकाय तेटलो प्रमाद छे, ते तो भार छे–बोजो छे. सर्व रागना भारथी
हळवो थईने अतीन्द्रियसुखरूप अमृतना प्रवाहमां मग्न थाय छे ते जीव मोक्षनो उद्यमी
छे. अरे, अशुभ तो छोडया, पण शुभरागमां रोकाय तो मोक्ष केम सधाय?
जे चैतन्यना अनुभवनुं कार्य छोडीने आखो दि’ बीजा कार्योना विकल्पो कर्या
करे छे ते आळसु छे, प्रमादी छे, अनुभवने माटे ते उद्यमी नथी पण शिथिल छे.
धर्मात्मा तो बाह्य कार्योथी विमुख थईने शुद्धचैतन्यना अतीन्द्रियसुखना अनुभवमां
मग्न थया छे, ने एवा स्वभावना उद्यमवडे ते मोक्षने साधे छे. मोक्षनी साधना तो
अतीन्द्रियसुखना अनुभववाळी छे, विकल्प वडे ते साधना थती नथी. खूब
शुभविकल्पो कर्या करवाथी मोक्षमार्ग थई जाय–एम बनतुं नथी. अहीं तो कहे छे के
शुभरागमां पडयो रहे तो तुं प्रमादी छो...ते प्रमाद छोडीने मोक्षमार्गमां उद्यमी था,
एटले के शुद्धचैतन्यना सुखने अनुभववामां मग्न था. शुद्धोपयोग– परिणतिवडे ज
मुक्ति थाय छे.
वीतरागस्वरूप आत्मा पोताना वीतरागभावरूप कार्यने न करे तो ते प्रमादी
छे; शुभराग ते पण प्रमादनो प्रकार छे, ते अशुद्धता छे, आळस छे. शुद्धउपयोग ते ज
आत्मानी जागृती छे, तेमां ज आनंद छे. राग तो पराश्रितभाव छे, तेमां आकुळता छे.
मोक्षमार्ग तो आत्म–आश्रित शुद्ध परिणाम छे. शुभराग तो मोहपरिणाम छे, ने
मोक्षमार्गरूप धर्म ते तो निर्मोहपरिणाम छे. मोह–राग–द्वेषरहित शुद्ध परिणामने ज
भगवाने जिनशासन कह्युं छे, तेने ज जैन धर्म कह्यो छे; रागने जिनशासनमां धर्म
नथी कह्यो, तेने तो मोह कह्यो छे.
अरे, आवा शुद्धपरिणामरूप धर्मने जाणे पण नहि ने आळसु थईने रागमां ज
पड्या रहे तेने मोक्षमार्ग क्यांथी सधाय? राग तो अशुद्धता छे तेमांथी शुद्धता केम
आवशे? रागने अनुभवनारो जीव अशुद्ध छे, शुद्धचैतन्यने अनुभवनारो