Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : २३ :
जीव शुद्ध छे. आवा शुद्धमार्गनो एवो द्रढ निर्णय करवो जोईए के कोईथी डगे नहि.
निःशंक निर्णयना जोरे मार्ग सधाय छे. आ ज प्रकारना मार्गथी धर्मी जीवो मोक्षने साधे
छे. शुद्धोपयोगवडे ज्यां स्वरूपमां मग्न थाय छे के तत्काळ ते मोक्षसुखने अनुभवे छे.
रागरूपी प्रमादमां तो कषायना भारथी भारेपणुं छे–बोजो छे, ने शुद्धस्वरूपनो
अनुभव तो चेतनारसथी भरेलो छे, आनंदरसथी निर्भर छे. भार तो बंनेमां छे–
एकमां कषायनो भार छे, बीजामां शांतिनो भार छे. रागी प्राणीने रागनी वातमां रस
आवे छे, धर्मात्माने आत्माना अनुभवनी चर्चामां रस आवे छे. अरे, जे चैतन्यना
अनुभवनी वार्तामां पण आवो आनंद, ते चैतन्यना साक्षात् अनुभवना आनंदनी तो
शुं वात ! आवा आनंदने अनुभवतां–अनुभवतां धर्मात्मा मोक्षमां चाल्या जाय छे.
* * *
मोक्षमार्ग एटले निरपराध निर्दोष भाव, तेमां राग–द्वेष–मोहनो अभाव छे.
जेटला राग–द्वेष–मोहभाव स्थूल के सूक्ष्म, अशुभ के शुभ, ते बधाय अपराध छे,
तेमनाथी रहित मोक्षमार्ग छे. जे अपराध होय ते मोक्षनुं कारण केम थाय? –ते तो
बंधनुं ज कारण छे. शुभराग सम्यग्द्रष्टिनो होय तोपण ते कांई मोक्षनुं कारण नथी.
मोक्ष पूर्ण अतीन्द्रिय सुखरूप छे ने तेनो उपाय पण अतीन्द्रिय सुखमय छे.
शुद्धपरिणतिवडे जे शुद्धचिद्रूपनो अनुभव ते मोक्षमार्ग छे. रागना सहारे ते अनुभव
थतो नथी, शुद्धताना सहारे ज ते अनुभव थाय छे. ते अनुभवमां अतीन्द्रिय सुखनुं
पूर वहे छे, तेमां धर्मी मग्न छे.
अनुभवदशावडे धर्मीने शुद्ध चेतना अने सुखनो प्रवाह वहे छे; तेना वडे सकळ
कर्मोनो क्षय करीने ते पूर्ण अतीन्द्रियसुखरूप मोक्षने पामे छे. मोक्षनुं कारण मोक्षनी
जातनुं ज होय छे, एनाथी विरुद्ध नथी होतुं कारण ने कार्य एक जातना होय, विरुद्ध न
होय, पूर्ण सुखरूप मोक्षनुं कारण सम्यग्दर्शन ते पण सुखना प्रवाहथी भरेलुं छे. चोथा
गुणस्थाननुं सम्यग्दर्शन पण अतीन्द्रिय सुखथी सहित छे. सुखना अनुभव वगरनुं
सम्यग्दर्शन होई ज न शके.
मोक्ष अने मोक्षनो मार्ग स्वद्रव्यने आश्रित छे. पर द्रव्यना आश्रये अशुद्धता
थाय छे, स्वद्रव्यना आश्रये शुद्धता थाय छे. ज्ञानमात्र भाव ज हुं छुं एवी प्रतीतमां
रागना अंशनेय धर्मीजीव भेळवता नथी. चोथा गुणस्थानथी सर्वज्ञनो मार्ग शरू थाय
छे; त्यांथी ज शुद्ध चैतन्यना अमृतनो प्रवाह शरू थाय छे, आनंदनुं पूर वहे छे. आवो
अनुभव ते मोक्षमार्ग छे.
*