निःशंक निर्णयना जोरे मार्ग सधाय छे. आ ज प्रकारना मार्गथी धर्मी जीवो मोक्षने साधे
छे. शुद्धोपयोगवडे ज्यां स्वरूपमां मग्न थाय छे के तत्काळ ते मोक्षसुखने अनुभवे छे.
एकमां कषायनो भार छे, बीजामां शांतिनो भार छे. रागी प्राणीने रागनी वातमां रस
आवे छे, धर्मात्माने आत्माना अनुभवनी चर्चामां रस आवे छे. अरे, जे चैतन्यना
अनुभवनी वार्तामां पण आवो आनंद, ते चैतन्यना साक्षात् अनुभवना आनंदनी तो
शुं वात ! आवा आनंदने अनुभवतां–अनुभवतां धर्मात्मा मोक्षमां चाल्या जाय छे.
तेमनाथी रहित मोक्षमार्ग छे. जे अपराध होय ते मोक्षनुं कारण केम थाय? –ते तो
बंधनुं ज कारण छे. शुभराग सम्यग्द्रष्टिनो होय तोपण ते कांई मोक्षनुं कारण नथी.
मोक्ष पूर्ण अतीन्द्रिय सुखरूप छे ने तेनो उपाय पण अतीन्द्रिय सुखमय छे.
शुद्धपरिणतिवडे जे शुद्धचिद्रूपनो अनुभव ते मोक्षमार्ग छे. रागना सहारे ते अनुभव
थतो नथी, शुद्धताना सहारे ज ते अनुभव थाय छे. ते अनुभवमां अतीन्द्रिय सुखनुं
पूर वहे छे, तेमां धर्मी मग्न छे.
जातनुं ज होय छे, एनाथी विरुद्ध नथी होतुं कारण ने कार्य एक जातना होय, विरुद्ध न
होय, पूर्ण सुखरूप मोक्षनुं कारण सम्यग्दर्शन ते पण सुखना प्रवाहथी भरेलुं छे. चोथा
गुणस्थाननुं सम्यग्दर्शन पण अतीन्द्रिय सुखथी सहित छे. सुखना अनुभव वगरनुं
सम्यग्दर्शन होई ज न शके.
रागना अंशनेय धर्मीजीव भेळवता नथी. चोथा गुणस्थानथी सर्वज्ञनो मार्ग शरू थाय
छे; त्यांथी ज शुद्ध चैतन्यना अमृतनो प्रवाह शरू थाय छे, आनंदनुं पूर वहे छे. आवो