समजाता रहस्योनो उकेल मळे छे, तेथी जुनी अने खोटी मान्यताओ दूर थाय छे, ने
साचा धर्मनो महिमा समजाय छे. देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये परम भक्ति जागे छे. तथा
बालविभागमां आवती सारी सारी शिखामण (जेवी के हंमेशां भगवानना दर्शन करवा,
रात्रिभोजन छोडवुं वगेरे) अमारा जीवनमां सारा संस्कार पाडे छे. आ रीते नानपणथी
धर्मना सारा संस्कार रेडाता होवाथी आगळ जतां खूब लाभकारी थशे–ए चोक्कस छे.
आ रीते बाल विभागथी अमने महान लाभ छे. तेथी ज, ‘बालविभाग’ शरू थया पछी
आखुं ‘आत्मधर्म’ होंशथी वांचीए छीए.’’
आंक मोकल्या छे; रचना भाववाळी छे. साथे एक सरस मजानुं चित्र मोकल्युं छे. जेमां
घनघोर काळा वादळने भेदीने सोनेरी कहानसूर्य ऊगी रह्यो छे ते द्रश्य छे, चित्रनो
परिचय आपतां तेमणे लख्युं छे के– ‘‘अहो, काळा घनघोर वादळारूपी संसारमां, ज्ञान–
ज्योते झळहळता गुरुदेवरूपी सोनेरी सूरज अमने दर्शन दे छे. शुं अद्भुत छे आ द्रश्य!
ओहो, अमारा धनभाग्य के आवा ज्ञानीपुरुषना अमने दर्शन थया.’’ (आ चित्रने
लीधे उत्तमकक्षाना लेखोमां पारुलबेन स्थान मेळवे छे.)
(
ए भाव दर्शाव्या छे के पं. टोडरमल्लजी जयपुरमां २०० वर्ष पहेलां अध्यात्मचिठ्ठी लखी
रह्या छे, अने ते चिठ्ठि मळतां मुलतानना साधर्मीओ आनंदित थाय छे; ते चिठ्ठि उपर
पू. गुरुदेव सोनगढमां प्रवचन आपी रह्या छे. उत्तम कक्षाना पंदर नंबरमां तेओनुं आ
चित्र पण स्थान मेळवे छे.
लखेल नथी. जे सभ्ये ए चित्रो मोकल्या होय ते पोतानुं नाम जणावशे तो तेने
पुस्तकोनी भेट मोकलवामां आवशे.)