: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : २९ :
आनंदस्वादने जाणतो नथी, एटले तेने ज अशुद्धभावथी परभावनुं कर्ता–भोक्तापणुं
छे. मिथ्याद्रष्टिना परिणमननो आवो स्वभाव छे के रागादिमां एकत्वबुद्धिरूप परिणमे
छे. ज्ञानी सम्यग्द्रष्टिनो आवो स्वभाव छे के ते पोताना शुद्धचैतन्यनो ज स्वामी थईने
परिणमे छे, अशुद्धभावोमां एकत्वबुद्धिरूप परिणमता नथी. आवा सम्यग्द्रष्टिने
सिद्धसमान कह्या छे. मिथ्यात्व ते संसार छे, मिथ्यात्व मटतां जीव पोताने सिद्धसद्रश
अनुभवे छे.
शुभराग वखते अज्ञानी रागने ज अनुभवे छे, पण ज्ञानपणे पोताने
अनुभवतो नथी; तेथी ते रागनो कर्ता–भोक्ता ज छे. ज्ञानी तो राग वखतेय पोताने
रागथी भिन्न ज्ञानपणे ओळखे छे, एटले ते रागना कर्ता–भोक्ता नथी. ज्ञानी
ज्ञानस्वभावमां निरत छे ने रागथी विरत छे. अज्ञानी रागमां निरत छे ने ज्ञानथी
विरत छे. ज्ञानीना ज्ञानपरिणमनमां रागादिनुं कर्तृत्व नथी. अज्ञानीना
अज्ञानपरिणमनमां ज रागादिनुं कर्तृत्व छे. अहीं तो कहे छे के रागादिना कर्तृत्वरूप
अज्ञानभाव ते ज संसार छे. ने रागना कर्तृत्वथी छूटेलो ज्ञानमयभाव ते मुक्तस्वरूप
छे. सिद्धभगवान जेम विकारने कर्ता नथी तेम सम्यग्द्रष्टि पण विकारने तन्मयपणे
करतो नथी, तेनाथी तो ते विरक्त ज छे. उपयोगलक्षणरूप आत्मा विकारने केम करे?
जेटला रागादि भावो छे ते बधाय कर्म तरफना भावो छे, आत्माना स्वभाव
तरफना ते भावो नथी. आत्माना स्वभाव तरफना भावो तो ज्ञानमय छे. आम बंने
भावने भिन्न जाणता थका निपुण जीवो रागादिनुं कर्तृत्व छोडीने ज्ञानपणे ज परिणमे
छे, ने अज्ञानने छोडे छे. ज्ञानभाव कांई विकारपणे परिणमतो नथी, तेथी ज्ञानीना
ज्ञानभावमां विकारनुं कर्तृत्व छे ज नहि.
जे पोतामां रागनुं कर्तृत्व ज अनुभवे छे तेणे शुद्धआत्माने देख्यो नथी. ए ज
रीते सामा ज्ञानीआत्माने जे रागना कर्तापणे देखे छे तेणे ज्ञानभावे परिणमता
ज्ञानीने ओळख्या नथी, ज्ञानीने ते देखतो नथी, रागने ज देखे छे, भाई, तारे ज्ञानीने
ओळखवा होय तो संयोगथी ने रागथी भिन्न एवा ज्ञानने देख. ज्ञानी तो
ज्ञानभावमां वर्ते छे; रागादिभावमां ज्ञानी वर्तता नथी. रागादि अशुद्धभावो तो
ज्ञानथी छूटा पड्या छे. तारे ज्ञानीने देखवा होय तो रागना अकर्तृत्वने देख. रागना
कर्तृत्वने देखतां तने ज्ञानी नहि देखाय; तेमां तो राग ज देखाशे.
सम्यग्द्रष्टि कहो के ज्ञानी कहो, ते शुं करे छे ? के केवळ जाणे छे एटले के मात्र
ज्ञानरूपे ज परिणमे छे, ज्ञान ज हुं छुं एम वेदे छे, पण रागादि अशुद्धभावोने करता के
वेदता नथी. आ रीते राग वगरनुं एकलुं ज्ञान ते मुक्तस्वरूप छे, तेथी ‘स हि मुक्त
एव’ ते ज्ञानी मुक्त ज छे. ज्ञानमां बंधन केम होय? बंधन तो अज्ञानथी ने रागथी
होय; पण एनाथी तो ज्ञानी जुदा पडी गया छे.