शुद्धस्वभावरूप परिणमतो थको ज्ञाननो ज कर्ता थाय, ज्ञान साथे आनंदनुं वेदन छे.
रागादिने पोताथी जुदा पण जाणे अने वळी तेनो कर्ता–भोक्ता पण थाय–एम बनी
शके नहि. जेनो कर्ता –भोक्ता थाय तेनाथी पोतानी भिन्नता केम जाणे? रागनो जे
चोथा गुणस्थानना धर्मीने दशा! हजी तो आत्मा जडनी शरीरनी क्रिया करे ने तेनाथी
धर्म थाय–ए वात तो क्यां गई? अहीं तो कहे छे के शरीर के तेनी क्रिया तो आत्मामां
छे ज नहि, रागनी क्रिया पण ज्ञानमां नथी. ज्ञानक्रिया ते ज आत्मानी क्रिया छे. ते
ज्ञानक्रियारूपे परिणमतो ज्ञानी सिद्धभगवाननी जेम रागादिनो अकर्ता छे. आ
अकर्तापणानी अपेक्षाए तेने मुक्त ज कह्यो छे.
शुद्धचैतन्यना आनंदने भोगववामां मग्न थई छे. ते शुद्धपरिणतिनी अपेक्षाए रागादि
परभावो छे ते परद्रव्यनी सामग्री छे. ते शुद्ध चैतन्यवस्तुनी सामग्री नथी. एनाथी
रहित शुद्धचैतन्यने अनुभवतो ज्ञानी ‘
वगरना, अने आ कहे के हुं रागवडे सिद्धपदने साधुं–तो एणे तो सिद्धभगवान करतां
विरुद्ध पोतानुं स्वरूप मान्युं. भाई, जेम सिद्धभगवानमां राग नथी तेम आ आत्माना
स्वरूपमां पण राग नथी, रागनुं कर्ता–भोक्तापणुं ज्ञानमां नथी, –एम अनुभवमां ले
अतीन्द्रिय आनंदने ते अनुभवे छे. राग बाकी रह्यो छे तेने ज्ञाननी साथे नथी
भेळवता, पण पोताना स्वरूपथी भिन्नपणे तेने जाणे छे. आवा आत्मानो अनुभव ते
मोक्षमार्ग छे. आवा अनुभव वगर मोक्षमार्ग थतो नथी.