Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
राग अने ज्ञाननी भिन्नताने जे जाणे ते रागनो कर्ता–भोक्ता न थाय, पण
शुद्धस्वभावरूप परिणमतो थको ज्ञाननो ज कर्ता थाय, ज्ञान साथे आनंदनुं वेदन छे.
रागादिने पोताथी जुदा पण जाणे अने वळी तेनो कर्ता–भोक्ता पण थाय–एम बनी
शके नहि. जेनो कर्ता –भोक्ता थाय तेनाथी पोतानी भिन्नता केम जाणे? रागनो जे
कर्ता–भोक्ता थाय तेणे रागथी पोतानी भिन्नता जाणी नथी.
अहो, अहीं तो कहे छे के जेवा निर्विकार सिद्धभगवान छे तेवो ज निर्विकार
सम्यग्द्रष्टि छे, सम्यग्द्रष्टिनुं ज्ञान पण अशुद्धताना कर्ता–भोक्ता वगरनुं छे. जुओ, आ
चोथा गुणस्थानना धर्मीने दशा! हजी तो आत्मा जडनी शरीरनी क्रिया करे ने तेनाथी
धर्म थाय–ए वात तो क्यां गई? अहीं तो कहे छे के शरीर के तेनी क्रिया तो आत्मामां
छे ज नहि, रागनी क्रिया पण ज्ञानमां नथी. ज्ञानक्रिया ते ज आत्मानी क्रिया छे. ते
ज्ञानक्रियारूपे परिणमतो ज्ञानी सिद्धभगवाननी जेम रागादिनो अकर्ता छे. आ
अकर्तापणानी अपेक्षाए तेने मुक्त ज कह्यो छे.
ज्ञानीनुं अंदरनुं शुद्धपरिणमन रागथी पार छे ते शुद्धताने अज्ञानी देखतो नथी;
केमके पोतानी परिणति रागथी जुदी पडी नथी. ज्ञानीनी परिणति रागथी जुदी पडीने
शुद्धचैतन्यना आनंदने भोगववामां मग्न थई छे. ते शुद्धपरिणतिनी अपेक्षाए रागादि
परभावो छे ते परद्रव्यनी सामग्री छे. ते शुद्ध चैतन्यवस्तुनी सामग्री नथी. एनाथी
रहित शुद्धचैतन्यने अनुभवतो ज्ञानी ‘
सिद्धसमान सदा पद मेरो’ एम अनुभवे छे.
सिद्धभगवानमां रागनो अंश पण नथी, अने आ कहे के हुं रागने करुं ने
रागथी मने धर्म थशे,–तो एणे पोताने सिद्धसमान न मान्यो. सिद्ध भगवान राग
वगरना, अने आ कहे के हुं रागवडे सिद्धपदने साधुं–तो एणे तो सिद्धभगवान करतां
विरुद्ध पोतानुं स्वरूप मान्युं. भाई, जेम सिद्धभगवानमां राग नथी तेम आ आत्माना
स्वरूपमां पण राग नथी, रागनुं कर्ता–भोक्तापणुं ज्ञानमां नथी, –एम अनुभवमां ले
तो तुं सिद्धना मार्गे चाल्यो जा. बाकी राग वडे तो सिद्धना मार्गे जवातुं नथी.
अहो, धर्मीना अंदरना अनुभवनी आ अलौकिक वात छे.
केटलाक माणसो कहे छे के चोथा गुणस्थाने सम्यग्द्रष्टिने अतीन्द्रियसुखनुं वेदन
न होय; अहीं तो आचार्यदेव कहे छे के चोथा गुणस्थानवाळा सम्यग्द्रष्टि मुक्त ज छे–
सिद्ध जेवा ज छे. सिद्धनी जेम रागादिभावोथी छूटा पडीने ज्ञानने अनुभवता थका
अतीन्द्रिय आनंदने ते अनुभवे छे. राग बाकी रह्यो छे तेने ज्ञाननी साथे नथी
भेळवता, पण पोताना स्वरूपथी भिन्नपणे तेने जाणे छे. आवा आत्मानो अनुभव ते
मोक्षमार्ग छे. आवा अनुभव वगर मोक्षमार्ग थतो नथी.