Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : ३१ :
आ वस्तुस्वभावना नियमो छे. आवा नियमने जाणे नहि ने बीजी रीते
(एटले के रागथी) धर्म करवा जाय तो ते जीव वस्तुस्वभावना नियमनो भंग करे छे
एटले गुन्हेगार छे, आत्मामां तो ज्ञान–आनंद ने सुख भर्या छे, पण कांई तेमां राग–
द्वेष के दुःख नथी भर्या. तेथी शुद्धआत्माना अनुभवमां धर्मीने आनंदनो ज भोगवटो
त्र् कारतक मासथी २६मुं वर्ष शरू थशे
नवा वर्षनुं लवाजम रूा.४/– मोकलो.
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ सौराष्ट्र (फोन नं.३४)
o नैरोबीना सुंदरजीभाई हेमराज ता. २–६–६८ ना रोज मुंबई मुकामे हार्टफेईलथी
एकाएक स्वर्गवास पामी गया छे. तेओ आफ्रिकाथी देशमां आवेला ने वींछीया
जन्मोत्सवमां तेमणे खूब उमंगथी भाग लीधो हतो. अमने परदेशमां रहेनारने
आवो अवसर फरी क्यारे आवे! एवी भावनाथी वैशाख सुद बीजने दिवसे
गुरुदेवने आहारदाननो पण खास लाभ लीधो हतो.
o जेतपुरना श्री जयालक्ष्मीबेन (ते धीरजलाल भाईचंद देसाईना धर्मपत्नी मुंबई
मुकामे ता.६–६–६८ ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे. तेमने पू. गुरुदेव प्रत्ये घणो
भक्तिभाव हतो, ने थोडा वखत पहेलां जेतपुर गुरुदेव पधार्या त्यारे तेमणे
उत्साहथी लाभ लीधो हतो.
– स्वर्गस्थ आत्माओ देव–गुरु–धर्मना शरणे आत्महित पामो.