छंद, प–चाल अने ६–हरिगीत, ए प्रमाणे छ प्रकारना ढाळमां छ प्रकरणो छे.
अथवा मिथ्यात्वादि शत्रुओथी आत्मानी रक्षा करवाना उपायनुं आमां
वर्णन छे एटले मिथ्यात्वादिथी रक्षा करवा माटे आ शास्त्र ढाळ समान छे.
पंडित श्री दौलतरामजीए पोतानी शक्ति प्रमाणे शास्त्रोनो नीचोड करीने
आ छढाळामां गागरमां सागरनी जेम भर्यो छे, पूर्वाचार्योना कथनअनुसार
शास्त्रना रहस्यनी घणी वात आमां मुकी छे. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षानी
संसारअनुप्रेक्षामां पण चारगतिनां दुःखोनुं वर्णन आ ज शैलीथी आवे छे,
तेने अनुसरीने आ छ ढाळामां लख्युं होय एम लागे छे. आ छहढाळा
पाठशाळाओमां पाठ्यपुस्तक तरीके पण प्रसिद्ध छे; घणा जैनो ते कंठस्थ पण
करे छे. नवनीतभाई झवेरीनी मांगणीथी तेना उपर आ प्रवचनो शरू थाय
छे. तेमां प्रथम वीतराग–विज्ञानने नमस्कार करीने मंगलचरण करे छे–
शिवस्वरुप शिवकार नमुं त्रियोग सम्हारिके।।१।।
आ श्लोकमां सोरठा–राग छे, तेनी गावानी खास हलक छे. शास्त्रकार आ
मंगळश्लोकमां अरिहंत भगवानना वीतराग–विज्ञानने नमस्कार करतां कहे छे के–
वीतराग–विज्ञानरूप केवळज्ञान ते त्रण भुवनमां सार छे–उत्तम छे, ते शिवस्वरूप
एटले के आनंदस्वरूप छे, अने शिवकार एटले के मोक्षनुं करनार छे. आवा सारभूत
वीतराग–विज्ञानने हुं त्रणे योगनी सावधानीपूर्वक नमस्कार करुं छुं.