Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
जुओ, मांगळिकमां वीतराग–विज्ञानने याद कर्युं छे. चोथा गुणस्थाने धर्मीने
भेदज्ञान थयुं त्यारथी अंशे वीतराग–विज्ञान शरू थयुं छे, ने केवळज्ञान थतां पूर्ण
वीतराग–विज्ञान प्रगटी गयुं छे. आवुं वीतरागी–विज्ञान ते ज मोक्षनुं कारण छे, ते ज
जगतमां उत्तम अने मांगळिक छे. राग तरफनी सावधानी छोडीने अने आवा
वीतराग–विज्ञान प्रत्ये सावधान थईने, तेनो आदर करीने तेने नमस्कार करीए छीए.
वीतराग–विज्ञानने नमस्कार कर्या तेमां अनंता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार आवी
जाय छे, केमके बधाय अरिहंत भगवंतो वीतराग–विज्ञानस्वरूप छे. कोई अरिहंतनुं
नाम भले न लीधुं पण ‘वीतराग–विज्ञान’ कह्युं तेमां बधाय अरिहंतो आवी गया;
बधाय पंचपरमेष्ठी भगवंतो पण वीतराग–विज्ञानरूप छे, एटले वीतराग–विज्ञानने
नमस्कार करतां तेमां बधाय पंचपरमेष्ठी भगवंतो आवी गया.
पं. श्री टोडरमल्लजीए पण मोक्षमार्ग–प्रकाशकना मंगलाचरणमां
वीतरागविज्ञानने नमस्कार कर्या छे–
“मंगलमय मंगलकरण वीतरागविज्ञान;
नमुं तेह जेथी थया अरहंतादि महान.”
मंगलमय अने मंगलकरनार एवुं जे वीतरागविज्ञान तेने नमस्कार करुं छुं–के
वीतराग–विज्ञान ते त्रणे भुवनमां साररूप छे. अधोलोक, मध्यलोक के
ऊर्ध्वलोक, नरकमां, मनुष्यलोकमां के देवलोकमां, त्रणे भुवनमां जीवोने वीतराग–
विज्ञान ज साररूप हितरूप छे, सर्वत्र ते ज उत्तम छे, ते ज प्रयोजनरूप छे. जेम
‘समयसार’ एटले