वीतराग–विज्ञान प्रगटी गयुं छे. आवुं वीतरागी–विज्ञान ते ज मोक्षनुं कारण छे, ते ज
जगतमां उत्तम अने मांगळिक छे. राग तरफनी सावधानी छोडीने अने आवा
वीतराग–विज्ञान प्रत्ये सावधान थईने, तेनो आदर करीने तेने नमस्कार करीए छीए.
वीतराग–विज्ञानने नमस्कार कर्या तेमां अनंता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार आवी
जाय छे, केमके बधाय अरिहंत भगवंतो वीतराग–विज्ञानस्वरूप छे. कोई अरिहंतनुं
नाम भले न लीधुं पण ‘वीतराग–विज्ञान’ कह्युं तेमां बधाय अरिहंतो आवी गया;
बधाय पंचपरमेष्ठी भगवंतो पण वीतराग–विज्ञानरूप छे, एटले वीतराग–विज्ञानने
नमस्कार करतां तेमां बधाय पंचपरमेष्ठी भगवंतो आवी गया.
पं. श्री टोडरमल्लजीए पण मोक्षमार्ग–प्रकाशकना मंगलाचरणमां
वीतरागविज्ञानने नमस्कार कर्या छे–
विज्ञान ज साररूप हितरूप छे, सर्वत्र ते ज उत्तम छे, ते ज प्रयोजनरूप छे. जेम