Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
आत्माना भान अने अनुभवपूर्वक छद्मस्थनेय वीतरागविज्ञान होय छे; चोथा
गुणस्थानथी शरू करीने जेटलुं सम्यग्ज्ञान छे ते राग वगरनुं ज छे. स्वसंवेदन छे ते
वीतराग ज होय छे, रागवाळुं होतुं नथी, ए वात परमात्मप्रकाशमां वारंवार
‘वीतराग स्वसंवेदन’ एम कहीने समजावी छे. साधकभूमिकामां राग हो भले पण तेनुं
जे स्वसंवेदनज्ञान छे ते तो वीतराग ज छे. अहीं मुख्यपणे पूर्ण वीतराग एवा
केवळज्ञाननी वात छे. अहो, जगतमां जे कोई जीव पोतानुं हित करवा चाहतो होय
तेणे पूर्ण केवळज्ञान पद ज नमवा योग्य छे, ते ज आदरवा लायक छे, तेने ज हितरूप
समजीने ते प्रगट करवा योग्य छे. सर्वज्ञपदनो अचिंत्य अपार महिमा जाणीने मारुं
अंतरवलण ते वीतराग विज्ञान तरफ ढळे छे नमे छे.
जुओ, आ मांगळिकमां भगवानना गुणने ओळखीने नमस्कार थाय छे.
वीतराग विज्ञानरूप केवळज्ञान ते पर्याय छे, ने ते प्रगटवानी आत्मामां ताकात छे.
राग वगर एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने जाणे–एवुं जेनुं सामर्थ्य छे ते पर्याय
आत्मामांथी ज प्रगटे छे. आम श्रद्धामां लईने ओळखाणपूर्वक वीतरागविज्ञानने जेणे
नमस्कार कर्या तेने पोतानी पर्यायमां पण अंशे एवुं वीतराग विज्ञान प्रगट्युं, ते
अपूर्व मंगळ छे, ते साररूप छे.
‘सार’ एटले माखण; जेम छाशने वलोवीने तेमांथी साररूप माखण काढे छे,
तेम त्रण लोकनुं मथन करी करीने सन्तोए तेमांथी सार शुं काढ्यो? –तो कहे छे के–
‘तीन भुवनमें सार वीतराग विज्ञानता।’ वीतराग विज्ञान ते जगतमां सारभूत छे.
ए सिवाय रागथी धर्म मानवो ते तो पाणीने वलोववा जेवुं छे, तेमांथी कांई सार
नीकळे तेम नथी. ज्ञानीओए जगतना सर्वे तत्त्वोने जाणीने तेनुं मथन करतां तेमांथी
शुद्ध चैतन्यना केवळज्ञानरूपी माखण तारव्युं. तेने ज साररूप जाण्युं. अंर्तध्यानवडे
चैतन्यने वलोवीने मुनिओए वीतराग विज्ञानरूप सार काढ्यो. बाकी बाह्यद्रष्टि जीवो
तो पुण्यरूपी छाशमां भरमाई गया. तेओ शुभरागमां ज संतुष्ट थई गया, पण
रागथी पार एवा वीतराग विज्ञानने तेओए जाण्युं नहि. वीतराग विज्ञानने साररूप
ओळखीने तेनुं बहुमान करवुं ते मंगळ छे.
आत्मामांथी राग–द्वेष टळी गया ने ज्ञाननी पूरी दशा प्रगट थई, त्यां भूख–
तरस वगेरे १८ दोष रहित परम आनंदमय केवळज्ञान थयुं; तेवुं केवळज्ञान पोतामां
प्रगट करवा माटे तेनी प्रतीत करीने वंदन अने आदर करीए छीए. आ रीते
सर्वज्ञदेवनी श्रद्धा अने बहुमानपूर्वक शास्त्रनी शरूआत थाय छे.