: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : ३७ :
शक्तिना चमकार :
(४७ शक्तिना प्रवचनोमांथी)
आत्मानी शक्तिओ बधी वीतरागस्वरूप छे, तेनो धरनार वीतराग छे ने तेनी
सन्मुख थतां वीतरागता थाय छे. –आ रीते द्रव्य–गुण–पर्यायनी एकतामां वच्चे
क्यांय राग रहेतो नथी.
आत्मा राग विना जीवी शके छे, पण चेतना विना जीवी शकतो नथी. चैतन्यप्राण
वडे जीवता आत्माने कोई हणी शके नहि.
जेम विद्यमान सीमंधरभगवानने ‘जीवन्तस्वामी’ कहेवाय छे, तेम चैतन्यशक्ति वडे
जीवतो आत्मा ते जीवनशक्तिनो स्वामी एटले जीवन्तस्वामी छे.
लोकोमां कहेवाय छे के ‘शक्तिप्रमाणे आपवुं.’ आत्मामां शक्ति तो केवळज्ञाननी छे,
ते जो केवळज्ञान आपे तो ज तेणे शक्तिप्रमाणे आप्युं कहेवाय; अधूरुं आपे के राग
आपे तो ते शक्तिप्रमाणे आप्युं न कहेवाय.
जेम करोड रूपियानी मूडीवाळो माणस जिनमंदिर बंधाववा माटे एक पैसो
आपे तो तेणे शक्तिप्रमाणे आप्युं न कहेवाय; करोड रूपियानी मूडीवाळो
करियावरमां सो–बसो रूा. आपे तो ते कांई शक्तिप्रमाणे न कहेवाय. त्यां ओछुं
मळतां अपमान लागे छे! तो हे भाई! तारा आत्मानी शक्तिमां अनंत
सामर्थ्यवाळी केवळज्ञानलक्ष्मी छे, तेमांथी अनंतमा भागनुं ज्ञान ज तुं तारी
पर्यायमां आपे छे, तो ते शक्तिप्रमाणे आप्युं न कहेवाय. –ते तो अनंतमा भागनुं
छे; तो तेमां तने केम ओछुं नथी लागतुं!! शक्तिनी सन्मुख थईने शक्ति जेवी ज
पूर्ण ताकात पर्यायमां प्रगट करे तेणे शक्ति प्रमाणे आप्युं कहेवाय.
पर्यायमां कार्य न आवे तेणे कारणने स्वीकार्युं नथी. कारणनी सन्मुख थईने तेने स्वीकारतां ज
तेवुं कार्य प्रगटे छे; ते कार्य द्वारा ज कारणनो स्वीकार थयो छे. आम कारण–कार्यनी संधि छे.
चैतन्यशक्तिनो स्वीकार चैतन्यभाव वडे ज थाय छे.
चैतन्यशक्तिनो स्वीकार रागभाव वडे थतो नथी.
आत्मामां सुख छे एम क्यारे मान्युं कहेवाय? के सुखनो अनुभव प्रगटे त्यारे.
आत्मानी बधी शक्तिओ आनंददायक छे, केमके आनंद बधी शक्तिओ साथे वणायेलो छे.
शक्ति एटले परमात्मानां गुणो!
अहो! ए गुणना महिमानुं शुं कहेवुं? कोई अलौकिक मांगळिककाळे आचार्यदेवे आ
शक्तिओ लखी छे. अद्भुत चैतन्यरसने घोळीघोळीने आ शक्तिओ काढी छे.
दरियामां डुबकी मारीने रत्नो काढे, तेम चैतन्य–दरियामां अनुभवरूपी डुबकी
मारीने आ अचिंत्य रत्नो आचार्यदेवे जगत समक्ष मुक्यां छे.