: ३८ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
बालविभागना हजारो सभ्यो अमने साधर्मीकुटुंब समान भासे छे.
(ले : कनकबाळा रतिलाल जैन : नं.१९७४ जोरावरनगर)
(उत्तमकक्षाना लेखोमां आ लेखने स्थान मळ्युं छे.)
आत्मधर्मना बालविभाग द्वारा हजारो बाळकोमां नानपणथी जे धर्मसंस्कारनां
बी रोपाय छे ते आगळ वधीने मोटा वृक्षनी जेम फालशे ने सम्यग्दर्शनादि मधुरा फळ
आपशे. –आ उत्तम भावना बालविभागना सभ्यपत्रकमां (आंबाना झाड द्वारा)
प्रदर्शित करी छे.
बालविभागनी सरळ शैलि अमारा हृदयमां धर्मना संस्कार द्रढ करे छे....ने
धर्ममां उत्साहथी रस लेवा प्रेरे छे. हजारोनी संख्यामां बालविभागनां सभ्यो ते बधाय
अमने साधर्मी –कुटुंब समान भासे छे, केमके ‘साचुं सगपण साधर्मीनुं’. धर्मनी
साधनामां बधा साधर्मीओए नम्रपणे एकबीजाने टेको ने प्रोत्साहन आपवुं जोईए.
बालविभागनी टोच उपर लख्युं छे के ‘अमे जिनवरनां सन्तान’ –एटले
आपणे जिनवरदेवनी आराधनामां ने आज्ञामां रहेनारा, अने जिनवरना मार्गे
चालनारा बंधुओ छीए. आवी उच्च भावनाने बालविभाग पोषे छे.
बालविभागे नाना बाळको उपर चमत्कारीक असर करीने एम समजाव्युं छे के
जीवनमां धर्म जेवुं बीजुं कांई नथी. एटले ज्ञान–वैराग्यनी भावना अने तत्त्वज्ञाननो
प्रेम जागे छे. तेमां आवती रसप्रद प्रश्नोत्तरी, टूचकडा काव्यो ने रमुजी शैलीना उखाणा
अमने आनंद साथे ज्ञान आपे छे. आत्मार्थीता, वात्सल्य ने देव–गुरु–धर्मनी सेवाना
अद्भुत संस्कार अमने बालविभाग द्वारा मळे छे...ते अमारा जीवनने नवो वळांक
आपे छे अने कोलेजना अभ्यास करतां पण धार्मिक अभ्यासने वधु महत्त्वनो समजीने
अमे तेना रसल्हाणनुं आस्वादन करीए छीए. टूंकामां बालविभागने अमे धर्मनुं एक
पवित्र झरणुं मानीए छीए. अने दिनोदिन तेनो विकास थाय एवी अंतरथी भावना
भावीए छीए. –जयजिनेन्द्र
आ अंकमां छठ्ठा पाने–
मनुष्यगतिमां सम्यग्द्रष्टि करतां मिथ्याद्रष्टि संख्यातगुणा छे एम छपायुं छे तेने
बदले असंख्यातगुणा छे एम वांचवुं. केमके सम्मूर्छन मनुष्यो सहित असंख्याता जीवो
मनुष्यगतिमां छे.