Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
शुद्धस्वरूपनो अनुभव करतां रागादि अशुद्ध परिणति छूटी जाय छे, ने शुद्धस्वरूप जेवुं छे तेवुं
प्रगटेे छे. अशुद्धतामां के शुद्धतामां परद्रव्यनो तो कांई सहारो नथी, जीव पोते ज अशुद्ध के
शुद्ध पर्यायरूपे परिणमे छे.
परद्रव्य ज मने राग–द्वेष करावे छे–एवी दुर्बुद्धि करे तेने राग–द्वेष–अशुद्धता कयारे
मटे? कदी न मटे केमके परथी भिन्न एवी स्ववस्तुनो बोध तेने नथी, तेनी बुद्धि आंधळी
थई गई छे तेथी पोताना दोषने ते देखी शकतो नथी; दोषने नथी देखतो तेम दोषरहित
शुद्धस्वरूपने पण ते देखतो नथी. तेथी सम्यकत्वरहित ते जीव अपराधी छे, जिन–आज्ञाने ते
मानतो नथी. जिनआज्ञा तो एवी छे के जीव अने पुद्गल बंनेनुं स्वतंत्र भिन्न भिन्न
परिणमन छे; रागादि अशुद्धता ते जीवनो पोतानो अपराध छे; तेने बदले परनो दोष काढवो
ते अन्याय छे, अनीति छे; ते अपराधी जीव संसारमां भमे छे.
भाई, तारा दोषे ज तने बंधन छे; अने तारी शुद्धताए ज तने मुक्ति छे, बंधन अने
मुक्ति बंने अवस्थामां तारुं ज कर्तृत्व छे, तारी अवस्थामां बीजानुं कर्तृत्व जरापण नथी.
–आवी स्पष्ट वस्तुस्थिति जैनशासनमां प्रसिद्ध छे. तेने जे नथी जाणतो ते मिथ्याद्रष्टि छे,
तेने शुद्धतानो अवसर आवतो नथी.
जीवने शुद्ध परिणमननो अवसर क्यारे? के पोताना शुद्ध स्वरूपने अनुभवे त्यारे.
जीव ज्यारे परथी भिन्न पोताना सहज स्वरूपने अनुभवे छे त्यारे तेने शुद्धतारूप परिणमन
थाय छे. ज्यां सुधी पर साथे एकताबुद्धि करे छे त्यांसुधी तेने शुद्ध परिणमननो अवसर
नथी. पर साथे एकताबुद्धि करनार अशुद्धरूपे ज परिणमे छे. जगतमां घणा जीवोनो ढगलो
तो अज्ञानथी अशुद्धतारूपे ज परिणमी रह्यो छे; कोई विरला जीवो ज भेदज्ञान करीने
शुद्धतारूपे परिणमे छे.
जीवनो स्वभाव तो शुद्ध छे, तो ते अशुद्धतारूप केम परिणमे ? –माटे परद्रव्य ज तेने
तेने कहे छे के–भाई! जीवनी अवस्थामां अशुद्धतारूप परिणमवानी पण शक्ति छे.
द्रव्यस्वभावमां भले अशुद्धता नथी पण पर्यायमां तो शुद्धता के अशुद्धतारूप परिणमन
थवानी योग्यता छे, ते कांई परने लीधे नथी, पोतानी पर्यायनी ज तेवी ताकात छे. परद्रव्य
तेमां कांई ज करतुं नथी. जीव पोते पोतानी पर्यायनी ताकातथी अशुद्ध थाय छे, ने पोते ज
पोतानी पर्यायनी ताकातथी शुद्ध थाय छे. जो परद्रव्यनुं अस्तित्व ज तेने अशुद्धतानुं कारण
होय तो तो अशुद्धता थया ज करे; अशुद्धताथी छूटीने शुद्धतारूपे पोते परिणमी ज न शके ! –
पण एम नथी. अनंत जीवो शुद्धस्वरूपना अनुभववडे अशुद्धता मटाडीने सिद्धपद पाम्या छे.