प्रगटेे छे. अशुद्धतामां के शुद्धतामां परद्रव्यनो तो कांई सहारो नथी, जीव पोते ज अशुद्ध के
शुद्ध पर्यायरूपे परिणमे छे.
थई गई छे तेथी पोताना दोषने ते देखी शकतो नथी; दोषने नथी देखतो तेम दोषरहित
शुद्धस्वरूपने पण ते देखतो नथी. तेथी सम्यकत्वरहित ते जीव अपराधी छे, जिन–आज्ञाने ते
मानतो नथी. जिनआज्ञा तो एवी छे के जीव अने पुद्गल बंनेनुं स्वतंत्र भिन्न भिन्न
परिणमन छे; रागादि अशुद्धता ते जीवनो पोतानो अपराध छे; तेने बदले परनो दोष काढवो
ते अन्याय छे, अनीति छे; ते अपराधी जीव संसारमां भमे छे.
–आवी स्पष्ट वस्तुस्थिति जैनशासनमां प्रसिद्ध छे. तेने जे नथी जाणतो ते मिथ्याद्रष्टि छे,
तेने शुद्धतानो अवसर आवतो नथी.
थाय छे. ज्यां सुधी पर साथे एकताबुद्धि करे छे त्यांसुधी तेने शुद्ध परिणमननो अवसर
नथी. पर साथे एकताबुद्धि करनार अशुद्धरूपे ज परिणमे छे. जगतमां घणा जीवोनो ढगलो
तो अज्ञानथी अशुद्धतारूपे ज परिणमी रह्यो छे; कोई विरला जीवो ज भेदज्ञान करीने
शुद्धतारूपे परिणमे छे.
थवानी योग्यता छे, ते कांई परने लीधे नथी, पोतानी पर्यायनी ज तेवी ताकात छे. परद्रव्य
तेमां कांई ज करतुं नथी. जीव पोते पोतानी पर्यायनी ताकातथी अशुद्ध थाय छे, ने पोते ज
पोतानी पर्यायनी ताकातथी शुद्ध थाय छे. जो परद्रव्यनुं अस्तित्व ज तेने अशुद्धतानुं कारण
होय तो तो अशुद्धता थया ज करे; अशुद्धताथी छूटीने शुद्धतारूपे पोते परिणमी ज न शके ! –
पण एम नथी. अनंत जीवो शुद्धस्वरूपना अनुभववडे अशुद्धता मटाडीने सिद्धपद पाम्या छे.