: १६ : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
ज्योतिबेन बाबुभाई जैन (नं.१७९०)
सोनगढ: तेमणे जोडका शोधवाना प्रश्नो, तथा
भांग्यातूट्या धार्मिक आंक तथा कक्को मोकल्यो
छे. खाली खानामां शब्दो गोठववाना कोयडा
तेमनी शैलीना आधारे तैयार करीने कोईवार
आपीशुं....जे दरेकने गमशे.
जुनागढथी कुसुमबेन, मुकेशकुमार
तथा किरणबाळा (स.नं.२०४०, २०३९,
२०३८) ते त्रणेए धार्मिक कक्को लखी
मोकल्यो छे.
वडीयाथी उषाबेन के. जैने (नं.
१६११) पण धार्मिक कक्को लखी मोकल्यो छे.
प्रांतिजथी कनुभाई एम. जैन
बी.ए. (स.नं.१८८६) तेमणे अगाउ
चित्रकथा (कार्टूनरूपे) लखी मोकलेल. कार्टून
द्वारा तेमनी रजुआत सारी छे, तेमणे
गोठवेली कथा नीचे मुजब छे–
एक माणस गुरु पासे जईने कहे छे:
हे गुरुदेव! मने धर्म आपोने !
गुरु कहे छे –हमणां ज में एक
मगरने धर्म आप्यो छे, तुं तेनी पासेजा.
मगर पासे जईने ते माणस कहे छे –
हे मगर! मने धर्म आप.
मगर कहे छे –प्रथम मने एक लोटो
पाणी पा, पछी तने धर्म आपुं.
माणस कहे छे –अरे, तुं पाणीमां ज
रहे छे ने मारी पासे पाणीनी मांगणी करे
छे. –केवी मूर्खाई?
मगर कहे छे –हे मानव! हुंनहि
पण तुं मूर्ख छे; केमके धर्म तारा आत्मामां
छे ने तुं बहार गोते छे!
माणस विचारमां पडी गयो: अरे,
हवे समजायुं के धर्म बहारथी नथी मळतो,
धर्म तो निजात्मामां ज छे.
हवे भेदज्ञाननुं प्रभात ऊग्युं..
..सम्यकत्वनो सोनेरी सूरज ऊग्यो...अने
मोक्षप्राप्तिनो मार्ग खूल्लो थयो.
(भाईश्री कनुभाई! तमारी
चित्रकथा अहीं आपी छे. कार्टूनना चित्रो
सरखा व्यवस्थित होय तो छापवामां काम
आवी शके. फरी प्रयत्न करशो. तमारा
कार्टूनचित्रोने आवकारीशुं. चित्रमां काळी
शाही वापरशो.)
वासंतीबेन एच. जैन (सोनगढ)
तेमणे धार्मिक कक्को वगेरे लखी आपेल छे.
बालविभागना विकास माटे तेओ खास
भावनाशील छे. (तेमणे पू. बेनश्री
चंपाबेननी पप मी जन्मजयंती निमित्ते पप
पुष्पोनी पुष्पमाळा लखी मोकली छे–पण
स्थळसंकोचने हिसाबे छापी शकाई नथी.)
रांचीथी जयश्रीबेन जैने (नं.२०३)
कुंदकुंदप्रभुना विदेहगमननुं, ने त्यां सीमंधर
प्रभुनी सभामां उपस्थित राजकुमार वगेरे
जीवोनुं सुंदर भाववाही चित्र करीने मोकल्युं
छे. जो के तेमनुं चित्र सौथी छेल्लुं मळ्युं–
छतां उत्तम कक्षाना १प लेखोमां ते पोतानुं
स्थान मेळवी जाय छे.
रोमेशकुमार बाबुलाल जैन
(नं.२१८) अमदावाद : आपणा आ
उत्साही