Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : र४९४ आत्मधर्म : २१ :
धर्मात्मानी ज्ञानचेतना
(ज्ञानस्वभावने चेते–अनुभवे तेनुं नाम ज्ञानचेतना)
ज्ञानीना हृदयनुं रहस्य आ प्रवचन–लेखमां भर्युं छे. ज्ञानीना
अंतरना आत्मभावो समजवा माटे, तेमनी परिणति ओळखवा
माटे, ने पोतामां तेवा भावो प्रगट करवा माटे ‘धर्मात्मानी
ज्ञानचेतना’नुं मनन आत्मार्थी जीवोने बहु उपयोगी थशे. –सं.
(समयसार कळश ३२३–३२४ वगेरेना प्रवचनमांथी)
‘ज्ञानचेतना’ ते धर्मात्मानुं चिह्न छे. ज्ञानचेतना वडे धर्मी जीव
पोताने निरंतर शुद्धस्वरूपे अनुभवे छे. ज्ञानचेतना पोताना
स्वभावने स्पर्शनारी छे. अमुक शास्त्र आवडे तो ज्ञानचेतना
कहेवाय–एम नथी; पण पोताना शुद्ध स्वभावने स्पर्शे–अनुभवे एनुं
नाम ज्ञानचेतना छे. ज्ञानचेतनानुं काम अंदरमां समाय छे. अंतरना
स्वभावने स्पर्श्या विना शास्त्रादिनुं गमे तेटलुं जाणपणुं होय तोपण
तेने ज्ञानचेतना कहेता नथी; केमके ते तो रागने स्पर्शे छे–रागने
अनुभवे छे.
धर्मीनी शरूआत, मोक्षमार्गनी शरूआत के सुखनी शरूआत
‘ज्ञान चेतना’ थी थाय छे. ज्ञानचेतना एटले शुद्ध आत्माने
अनुभवनारी चेतना; तेमां रत्नत्रय समाय छे. आ ज्ञानचेतनानो
संबंध शास्त्रना भणतर साथे नथी; ज्ञानचेतना तो अंतर्मुख थईने
आत्माना साक्षात्कारनुं कार्य करे छे. ज्ञानचेतनाना बळे ज्ञानी
अल्पकाळमां ज केवळज्ञानने बोलावी ल्ये छे.