Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
शुद्ध चेतनावस्तु रागवगरनी छे; तो तेनो अनुभव पण राग वगरनो
ज होय. वस्तु रागरूप नथी, तेना अनुभवरूप पर्याय पण रागरूप
नथी. साधकपणानी भूमिकामां राग होय पण ते वखतेय धर्मीनी चेतना
तो रागथी जुदी ज परिणमे छे. चेतनाने अने रागने कांई लागतुं
वळगतुं नथी. चेतना तो स्वभावने स्पर्शनारी छे, परभावने ते
स्पर्शती नथी. चोथा गुणस्थाननी ज्ञानचेतना के केवळीभगवाननी
ज्ञानचेतना. ए बन्ने ज्ञानचेतना राग वगरनी ज छे. आत्माना
वैभवमां एकाग्र थयेली आनंदमय ज्ञानचेतना त्रणेकाळना विभावोथी
मुक्त छे. रागअंश रागमां छे, चेतनाअंश चेतनामां छे, बंने तद््न जुदा
पोतपोताना स्वरूपमां वर्ते छे. चेतनामां रागनो अभाव ज छे.
ज्ञानचेतना वाणीने के शास्त्रने नथी प्रकाशती, ज्ञानचेतना तो
शुद्ध चैतन्यने प्रकाशे छे. आवी ज्ञानचेतना ज शुद्धतानुं कारण थाय छे,
राग अंश शुद्धतानुं कारण थतो नथी, ते तो पोते अशुद्ध छे. अशुद्ध
कारण वडे शुद्धकार्य केम थाय ? –न ज थाय; कारण हंमेशां कार्यनी
जातिनुं होय छे, विरूद्ध होतुं नथी. स्वरूपने चेतनारी चेतनाने ज
खरेखर जीव कह्यो छे, ते चेतनामां जीव पोताना खरास्वरूपे प्रकाशे छे;
रागमां शुद्धजीव प्रकाशतो नथी. शुद्धचेतनामां अपार ताकात छे,
एकली वीतरागता तेमां भरी छे, आनंद तेमां भर्यो छे; ते आनंदने
अनुभवती मोक्ष तरफ दोडे छे.
ज्ञानचेतना वडे जीव शुं करे? आनंदने वेदे.
अज्ञानचेतनावडे शुं करे? रागद्वेष–दुःखने वेदे.
परभावना एक अंशने पण ज्ञानचेतना वेदती नथी.
अहा, ‘ज्ञानचेतना’ ना महिमानी जगतने खबर नथी. जेने
ज्ञानचेतना थई ते आत्मा सर्वे परभावोथी छूटो पडी गयो, ते
निजानंदना समुद्रने अनुभववामां लीन थयो. विकल्पथी पार
ज्ञानचेतना अंदर स्वभावमां घूसी गई छे, रागादि परभावो तो
अनुभवथी बहार रही गया छे. आवी अनुभवदशा जेने प्रगटी छे ते
ज्ञानी छे...तेने भगवती ज्ञानचेतना वर्ते छे.
जयवंत वर्तो ज्ञानचेतनावंत ज्ञानी भगवन्तों।