: २६ : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
वांच्ाको साथे वातच्ाीत अने तत्त्वचार्
(नाना–मोटा सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
प्रश्न :– आत्मानो निर्विकल्पअनुभव चोथा
गुणस्थाने थाय?
उत्तर :– हा; चोथुं गुणस्थान प्रगटवाना
समये एवो अनुभव जरूर होय छे.
प्रश्न :– दिव्यध्वनि ते आत्मानो गुण छे?
उत्तर :– ना; आत्मा अशब्द छे; ने
दिव्यध्वनि ते पुद्गलनी पर्याय छे.
बोधि–समाधि हे प्रभो!
हो संत केरा चरणमां;
जीवनमां के अंत समये
छूटे नहि, प्रभु ए कदा.
(दिल्हीथी दीपक जैन लखे छे:)
‘‘रत्नसंग्रह’’ भेट मळ्युं, तेमां १००
वचनामृतो वांचीने अत्यंत आनंद थाय छे.
पहेलां वांचेलुं पण आ फेरे वांचवाथी अति
आनंद थयो. ‘बे सखी ‘वांचीने तो एवी
प्रेरणा मळी के धर्मात्माने २२ वर्ष सुधी
संकट आववा छतां धैर्य नथी छोडता. अने
संसारमां ज्यां कोईए शरण न आप्युं त्यां
मुनिराजे शरण आप्युं. त्रीजुं पुस्तक
‘भगवान महावीर’ –ते वांचतां एम थयुं के
ते जीवे सिंह जेवी तिर्यंच पर्यायमां पण
सम्यग्दर्शन प्राप्त करी लीधुं, ने जो आ जीव
मनुष्यपर्यायमां पण सम्यग्दर्शन प्रगट न
करे तो एने धिक्कर छे. आपणने महान
उपकारी संतगुरु मळेल छे. तो तेमनुं
अनुसरण करवुं जोईए.’’
(भरत एच.जैन बी.ए. मुंबईथी लखे
छे :) बे दिवस अगाउ आत्मधर्म मळ्युं. अंदर
एवुं ते शुं छे के हाथमांथी मुकवुं ज नथी गमतुं!
पहेलां हुं मात्र बालविभाग वांचतो परंतु आ
वखते पुरुं आत्मधर्म फेरवतां तेना दरेक लेखो
खूब ज उपयोगी अने आचरवा योग्य लाग्या.’’
(कोलेजनुं भणेला युवको पण केटला रसथी
धार्मिक ज्ञानमां रस ल्ये छे तेनो आ एक नमूनो
छे. आवा तो ६०० उपरांत कोलेजियनो
उत्साहथी ‘आत्मधर्म’ मां रस लई रह्या छे–ए
गौरवनी वात छे. कोण कही शकशे के युवानो
धर्ममां रस नथी लेता ? –सं.)
विशेषमां तेओ लखे छे के, ‘‘जीव क्षणिक
सुखने मेळवी आनंद माने छे ते भूलवा तेने
सम्यक्ज्ञाननुं रटण अभ्यास ऊंडुं ज्ञान अति
जरूरी छे. ते माटे बालविभाग द्वारा अमने
उपयोगी मार्गदर्शन मळे छे. बालविभाग द्वारा
गुरुदेवनी वाणी ज अमने सरळ शैलिमां मळे छे.
आ तत्त्वमां नथी एवुं कांई अघरुं के अटपटुं–के
जे न समजी शकाय. अनेरूं–अनोखुं सीधुं सादुं
तत्त्व छे, के जे ध्यान राखीने अभ्यास करशे तेने
आ भव अनंत भवोनो नाश करीने
सम्यग्दर्शननी प्राप्तिरूप बनी रहेशे.’’
कलकत्ताथी शांतिभाई के. शाह लखे छे
के– ‘‘अषाड मासनो अंक बरोबर वांच्यो,
विचार्यो, मनन कर्यो; घणो ज आनंद थयो.
शरीरनी क्रिया अने आत्मानी ओळखाणबंने