: २८ : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
बाळकोमां खूब ज धार्मिक संस्कारो पडे छे.’’
(तमारा प्रश्नोना जवाब हवे पछी.)
‘‘बालविभागना हजारो सभ्यो
अमने साधर्मी कुटुंब समान भासे छे’’अने
‘‘अमे तो जिनवरनां सन्तान छीए’’ ए
प्रकारनुं लखाण वांचीने घणा सभ्योए
पोतानो भावभीनो उत्साह ने साधर्मीप्रेम
व्यक्त कर्यो छे.
अंधेरीना स.नं.१९९३ पोतानुं पूरुं
सरनामुं मोकलो.
ध्रांगध्राथी श्री केशुभाई एडवोकेट
‘आत्मवैभव’ पुस्तक वांचीने प्रमोद व्यक्त
करतां लखे छे के ‘‘आत्मानी ४७
शक्तिओने लगतुं आ एक महत्वनुं प्रकाशन
छे; आ काळे उत्साही जीवोने माटे एक
आगम–ग्रंथ समान छे. आ शक्तिओ द्वारा
विचारवामां आवे तो आत्मा जरूर लक्षगत
थाय तेम छे. सत् वस्तुनी प्ररूपणा करतुं
आवुं अपूर्व–अजोड अने सस्तुं साहित्य
अन्यत्र जोवा मळे तेम नथी. पोताना
अंतरमां जोयेलो ने प्रत्यक्ष अनुभवेलो
आत्मवैभव जगतना कल्याण माटे
उपदेशीने ज्ञानी–महात्माओए असीम
करुणा करी छे.’’
छबीलभाई संघवी बीलीमोराथी
लखे छे के– ‘आत्मवैभव’ पुस्तक आवेल,
ते अहीं एक महाराजश्रीनुं चोमासुं होई,
तेओेने घणुं सरस लागतां भेट तरीके
आपेल छे. तेथी बीजुं एक ‘आत्मवैभव’
तेमज ‘आत्मप्रसिद्धि’ बंने पुस्तको
मोकलशोजी.
फतेपुरथी बालविभागना सभ्य
ललिताबेन लखे छे के–आत्मधर्ममां नवुं नवुं
जाणवाथी आनंदित थाउं छुं. अमारे अहींयां
आत्मवैभवमां ४७ शक्तिओनुं वर्णन
सांभळवाथी आत्म–आनंदमां बहु रस आवे छे.
गुरुदेवना मोढेथी सांभळीए तो तो बहु ज
आनंद आवे. पण मननी धारेली होंश पूरी थती
नथी.
बीजुं, अमारे अहीं फतेपुरमां पाठशाळा
चाले छे, ६० जेटला विद्यार्थीओ भणे छे; पहेला
भागथी पुरुषार्थसिद्धिउपाय सुधीना विषयो
चाले छे; पण सुवर्णपुरीमां पाठ्यपुस्तकना नवा
भाग तैयार थवानी वात जाणी छे, ते कयारे
छपाय तेनी राह जोईए छीए. सुवर्णपुरीना
पुस्तको वांचवाथी बहु सरस समजण पडवा माटे
तमारा पाठ्य–पुस्तकोनी राह जोई रह्या छीए.’’
(तमने जाणीने आनंद थशे के जैनबाळपोथी
पछीनुं पहेली चोपडीनुं सुंदर पाठ्यपुस्तक
लखाईने लगभग तैयार थई गयुं छे, थोडा ज
मासमां तमारा हाथमां आवशे. – सं.)
राजस्थानना शाहपुरथी मेट्रिकना विद्यार्थी
संभवकुमार जैन पूछे छे–‘पृथ्वीनी प्रदक्षिणा’
लेख वांच्यो; चंद्रलोकमां देवोनी वसती छे तथा
त्यां जिनमंदिरो, बाग–बगीचा वगेरे छे; तो
रोकेटथी चंद्रनो फोटो लीधो तेमां ते केम नथी
देखाता?
उत्तर :– आजनुं विज्ञान हजी घणुं
अधूरुं अने खामीवाळुं छे–तेम विज्ञानीओ पण
स्वीकारे छे, ने विज्ञानीओ पृथ्वीना स्वरूप
बाबत हजी एकमत नथी. त्यारे जैन सन्तोनुं
वीतराग–विज्ञान परिपूर्ण अने खामी वगरनुं
छे. चंद्रलोकना फोटाना नामे प्रसिद्ध थयेल फोटो
खरेखर कोनो छे ते तो आपणे नथी कही शकता,
कदाच चंद्रनो होय तोपण तेमां चंद्रलोकथी
पृथ्वीनुं नीचेनुं पड देखाय, एनी पूरी विगतो
फोटामां आवी न शके.