Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
एक वारता
वारता सुणो आज मीठी के, भक्तो आवो स्वर्णपुरी धाममां,
कहानगुरु त्यां बिराजे भक्तो आवो विदेहजेवा धाममां.
भारत खंडे दक्षिणे पोन्नूर पहाड एक धाम,
वर्ष बे हजार वीती गया रहेता एक मुनिराज.
आत्म स्वरूपमां झूलता, हतुं आत्मानुं भान.
नग्न दिगंबर विचरता कुंदकुंद जेनुं नाम.
छठ्ठे सातमे झुलता विकल्प–निर्विकल्प थाय,
जेम ज्ञान हिंडोळो झुलतो घडी आवे ने घडी जाय.
एने विरह प्रभुना लागीआ, पंचमकाळ हतो त्यांय,
साक्षात अरिहंत देवना एने दर्शन क्यांथी थाय?
–वारता सूणो आज मीठी के.
ए लगन जागी अंतरमां भावना मनमां थाय,
कुंदकुंद आचार्य ऋद्धिबळे सदेहे विदेहमां जाय.
सीमंधर प्रभुजी शोभता समोसरण त्यां भराय.
‘एलाचार्य’ कहेवाई गया, जेनो देह नानकडो जणाय.
–वारता सूणो आज मीठ के
दर्शन प्रभुना करी लीधा, सुणी वीतराग वाणीधार,
ऋद्धिबळे पाछा वळ्‌या, जाणीने समयनो सार.
भाग्य भक्तोना उजळा हता, आव्यो मुनिने राग.
सत्य शास्त्र लखवा तणो विकल्प मुनिने थाय.
–वारता सूणो आज मीठी के
आत्मस्वरूपे झुलतां एणे लख्युं समयसार.
भाग्य योगे आवीयुं ए....कहानगुरुने हाथ.
रहस्य आगमनां खोलीया बताव्यो साचो मार्ग,
जय हो जय हो कुंदप्रभु, जय हो कहान गुरुराज.
वारता सुणो आज मीठी के, भक्तो आवो स्वर्णपुरी धाममां,
कहानगुरु त्यां बिराजे भक्तो आवो विदेह जेवा धाममां.
(वींछीयां नगरीमां जन्म जयंती प्रसंगे मुंबईनी भजनमंडळीए गायेलुं गीत.)