Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : र४९४ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. र४९४
चार रूपिया श्रावण
वर्ष रप: अंक १०
नानकडो दीवो
आदिनाथ भगवाननी स्तुति करतां श्री वादीराजमुनि कहे छे के हे नाथ!
भरतक्षेत्रमां आपे एकलाए ज युगनो भार उपाड्यो ने युगनी आदिमां
जीवोने मार्गदर्शन आप्युं. जेम विकल्पमां चैतन्यनो भार उपाडवानी ताकात
नथी तेम हे नाथ! आ धर्मयुगनो भार उपाडवानी आपना सिवाय कोईनी
ताकात न हती. हे देव! मोटामोटा मुनिवरो पण आपनी स्तुति पूरी करी न
शक्या, ने अंते विकल्प तोडीने स्वरूपमां समाया; तो हुं आपनी स्तुति केम करी
शकीश? छतांय, हे नाथ! जेम ऊंडी गूफामां ज्यां सूर्यनां किरणो न प्रवेशी शके
त्यां शुं नानकडो दीपक अजवाळुं नथी करतो? तेम हुं मारी अल्पबुद्धि द्वारा
आपनी स्तुति करवा तत्पर थयो छुं. केवळज्ञानरूपी सूर्य तो मारी पासे नथी
पण मति–श्रुतज्ञानरूपी नानकडा दीपक वडे अमारा चैतन्यनी संभाळ करीने हुं
आपनी स्तुति करीश. ए नानकडा दीपकना प्रकाशमां पण हुं आपने देखी
लईश. हे प्रभो! मति–श्रुतज्ञाननी जेटली ताकात छे तेटला वडे हुं आपने
मेळवी लईश एवो मने हरख अने विश्वास छे. अल्प मति–श्रुतज्ञाननी
स्वसंवेदनशक्तिद्वारा पण हुं चैतन्यस्वभावने अनुभवीने आपनी आराधना
करीश.
जुओ, आ स्तुतिकारनो उत्साह अने द्रढता. पोताना मति–श्रुतज्ञानने
स्वसन्मुख करीने ते सर्वज्ञनी स्तुति करे छे. मति–श्रुतना नानकडा दीवा वडे पण
सर्वज्ञना मार्गने प्रकाशीत करीने पोते निःशंक ते मार्गे चाल्या जाय छे.
(एकीभाव स्तोत्र–प्रवचनमांथी)