: २ : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
महावीरना दिव्यध्वनिो सन्देश
वीरनाथे विपुलाचल उपर दिव्यवाणी द्वारा अषाड
वद एकमे पहेलवहेलो उपदेश आप्यो. ते उपदेश द्वारा
यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणीने गौतमस्वामी आदि केटलाय
जीवो धर्मरूपे परिणम्या. वीरवाणीनो ए पावन प्रवाह
आजे पण वही रह्यो छे...ने एनुं पान करीने आजे पण
जीवो धर्मरूप थाय छे. आपणे पण ए जिनवाणीना मधुरा
वीतरागरसनुं पान करीए ने धर्मरूप थईए. अषाड वद
एकमनुं प्रवचन अहीं आप्युं छे.
(समयसार कळश २१३)
भगवान महावीर तीर्थंकर वैशाख सुद दसमे केवळज्ञान पाम्या...६६ दिवस बाद आजे
अषाड वद एकमे विपुलाचल उपर पहेलवहेली दिव्यवाणी छूटी...ते झीलीने ईन्द्रभूति ब्राह्मण
गणधरपद पाम्या, ने बारअंगरूप श्रुतनी रचना करी. ए रीते वीरशासननो आजे महान मंगल
दिवस छे; शासननुं आजे बेसतुं वर्ष छे. २प२४ वर्ष पहेलां ए प्रसंग बन्यो. पण भगवान
महावीरे जे उपदेश आप्यो ते आजे पण चाली रह्यो छे. भगवाने कहेलो भाव गणधरादि
दिगंबर संत–आचार्योए शास्त्रोमां गूथ्यो, ते शास्त्रोमांथी केटलांक आजे विद्यमान छे.
सर्वज्ञ परमेश्वरे कहेली वस्तुस्थिति शुं छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. जगतमां स्वयंसिद्ध
अनंता जीव ने पुद्गल द्रव्यो छे; तेमांथी कोई द्रव्य बीजा द्रव्यमां कदी भळी जतुं नथी;
एकबीजामां कांई करता नथी. जीव जीवपणे रहीने पोतानुं ज्ञानकार्य करे छे; पुद्गल पुद्गलपणे
रहीने एना वर्णादिनुं कार्य करे छे. बंने सदाकाळ जुदेजुदां पोतपोतानुं कार्य करे छे; कदी पोताना
स्वभावनी मर्यादा छोडीने अन्य द्रव्यना स्वभावरूपे थतां नथी. –आवो निश्चय छे, सर्वज्ञ
परमेश्वरे दिव्यध्वनिमां आवुं स्वरूप कह्युं छे, ने ते अनुभवगोचर पण थाय छे.
आत्मा ज्ञेयवस्तुओने जाणे खरो, पण ज्ञेय वस्तुओ साथे भळी जाय नहि. ज्ञेयो साथे
एकमेक थया वगर ज ज्ञान तेने जाणे छे. जाणवुं ते जीवनुं काम छे, पण पदार्थोने जाणतां तेमां
कांई घालमेल करी द्ये एवुं ज्ञाननुं काम नथी. हुं तो ज्ञान