Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : र४९४ आत्मधर्म : १ :
छुं–एम न ओळखतां अज्ञानी अन्य वस्तु साथे पोतानो संबंध माने छे. शरीरनी क्रियाने
जाणतां, हुं तेनो कर्ता होउं एम अज्ञानी माने छे. रागनेय जाणतां रागरूप न थाय एवो
ज्ञाननो स्वभाव छे. ज्ञान परज्ञेयोथी बहार रहीने तेमने जाणे छे, परमां प्रवेशी जतुं नथी–
तन्मय थतुं नथी. आवी ज्ञाननी भिन्नता अनुभववी ते भगवाननो उपदेश छे. भिन्न ज्ञानना
अनुभवमां राग–द्वेषनुं वेदन न रह्युं एटले वीतरागी सुखनुं वेदन रह्युं. आ रीते ज्ञानना
अनुभवमां सुख वगेरे अनंत गुणनो भेगो अनुभव छे.
हुं शरीरादि ज्ञेयरूपे थतो नथी, हुं तो ज्ञानरूपे ज रहुं छुं–एम ज्ञानस्वरूपमां द्रष्टि करतां
भेदज्ञान अने सम्यग्दर्शन थाय छे. ज्ञानस्वरूपे आत्माने देखे तेणे भगवाननो उपदेश जाण्यो छे.
पर ज्ञेय साथे ज्ञाननी भेळसेळ माने तेणे वीरभगवाने कहेला वस्तुस्वरूपने जाण्युंं नथी, एटले
तेेने धर्म थतो नथी. वस्तुस्वरूप जेवुं छे तेवुं साधे तो धर्म थाय.
दरेक वस्तु पोतानी मर्यादामां–सीमामां रहे छे, मर्यादा तोडीने बीजामां भळी जती नथी.
आत्मानो एक प्रदेश पण कदी पुद्गलमां भळी जाय, के पुद्गलनो एक परमाणु पण कदी
आत्मामां भळी जाय, एम बनतुं नथी. –आवी भिन्नताना भान विना ज्ञान पोताना आत्मामां
ठरशे नहि, ने तेने धर्म के सुख थशे नहि. परथी भिन्नता जाणीने ज्ञान पोतामां ठरे ते धर्म अने
सुख छे.
जीवनो स्वभाव ज्ञान छे, ते ज्ञाननुं कार्य ज्ञेयोने जाणवानुं छे; भले ज्ञेयोने जाणे, तेथी
कांई हानि नथी; केमके ज्ञेयने जाणवा छतां ज्ञान तो पोताना स्वरूपे रहे छे. भगवाने आवो
स्वभाव जाण्यो ने विपुलाचल पर दिव्यध्वनि वडे आवो स्वभाव जगतने देखाड्यो. आवा
शुद्धज्ञाननी अनुभूति ते जिनशासननी अनुभूति छे.
व्यवहारकथनमां जीवने परनो कर्ता कहेवामां आवे, पण ते कांई वस्तुनुं स्वरूप नथी.
साचुं वस्तुस्वरूप विचारतां एक द्रव्य बीजा द्रव्यमां कांई ज करतुं नथी. भेदज्ञान वगर अज्ञानी
पर्याये–पर्याये भूले छे; पोते पोताना ज्ञानने ज भूल्यो छे. तेने समजावे छे के भाई, ज्ञान अने
परज्ञेय अत्यंत जुदां छे; परने जाणे छतां ज्ञान परमां जराय भळतुं नथी माटे तुं तारा आत्माने
ज्ञानस्वरूपे ज देख.
ज्ञान अने तेनी साथे आनंद वगेरे अनंत गुण–एवा स्वतत्त्वने तुं देख, तो तेमां रागनी
के जडनी जराय भेळसेळ तने देखाशे नहि; तेमज रागमां के जडमां ज्ञाननो अंश पण नहि
देखाय. आम स्वभाव अने परभावनी अत्यंत भिन्नतारूप भेदज्ञान जिनवाणीए कराव्युं छे.
महावीरभगवाने विपुलगिरि उपर आजना दिवसे आवो उपदेश आप्यो. ने ते समजीने घणा
जीवो धर्म पाम्या.