जाणतां, हुं तेनो कर्ता होउं एम अज्ञानी माने छे. रागनेय जाणतां रागरूप न थाय एवो
ज्ञाननो स्वभाव छे. ज्ञान परज्ञेयोथी बहार रहीने तेमने जाणे छे, परमां प्रवेशी जतुं नथी–
तन्मय थतुं नथी. आवी ज्ञाननी भिन्नता अनुभववी ते भगवाननो उपदेश छे. भिन्न ज्ञानना
अनुभवमां राग–द्वेषनुं वेदन न रह्युं एटले वीतरागी सुखनुं वेदन रह्युं. आ रीते ज्ञानना
अनुभवमां सुख वगेरे अनंत गुणनो भेगो अनुभव छे.
पर ज्ञेय साथे ज्ञाननी भेळसेळ माने तेणे वीरभगवाने कहेला वस्तुस्वरूपने जाण्युंं नथी, एटले
तेेने धर्म थतो नथी. वस्तुस्वरूप जेवुं छे तेवुं साधे तो धर्म थाय.
आत्मामां भळी जाय, एम बनतुं नथी. –आवी भिन्नताना भान विना ज्ञान पोताना आत्मामां
ठरशे नहि, ने तेने धर्म के सुख थशे नहि. परथी भिन्नता जाणीने ज्ञान पोतामां ठरे ते धर्म अने
सुख छे.
स्वभाव जाण्यो ने विपुलाचल पर दिव्यध्वनि वडे आवो स्वभाव जगतने देखाड्यो. आवा
शुद्धज्ञाननी अनुभूति ते जिनशासननी अनुभूति छे.
पर्याये–पर्याये भूले छे; पोते पोताना ज्ञानने ज भूल्यो छे. तेने समजावे छे के भाई, ज्ञान अने
परज्ञेय अत्यंत जुदां छे; परने जाणे छतां ज्ञान परमां जराय भळतुं नथी माटे तुं तारा आत्माने
ज्ञानस्वरूपे ज देख.
देखाय. आम स्वभाव अने परभावनी अत्यंत भिन्नतारूप भेदज्ञान जिनवाणीए कराव्युं छे.
महावीरभगवाने विपुलगिरि उपर आजना दिवसे आवो उपदेश आप्यो. ने ते समजीने घणा
जीवो धर्म पाम्या.