Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : श्रावण : र४९४
बहारना पदार्थो जुदा, शरीर जुदुं, मन जादुं, वाणी जुदी, पाप जुदुं, पुण्य जुदुं–ए
बधायथी जुदुं एवुं ज्ञान ते आत्मानो स्वभाव छे, ने ते ज्ञानस्वभाव वडे समस्त ज्ञेयोने
जाणवानुं आत्मानुं सामर्थ्य छे. परज्ञेयने जाणवा छतां आत्मामां अशुद्धता के उपाधि आवी जती
नथी केमके परने जाणवा छतां आत्मा परमां भळी जतो नथी. भगवाननी वाणीए आवी
भिन्नता बतावी छे. आवी वस्तुस्थिति प्रगट होवा छतां जीवो केम भ्रम करे छे? भ्रमथी स्व–
परनी भेळसेळ होवानुं केम माने छे? ज्यां व्यवहारे एकबीजामां उपचार करीने कह्युं त्यां
अज्ञानी खरेखर ज स्व–परने एक मानी बेठो. पण भाई! व्यवहार तो एकने बीजामां
भेळवीने, एकना भावने बीजानो कहे छे, पण वस्तुस्वरूप एवुं नथी. स्व–परनो कोई अंश
एकबीजामां भळतो नथी. स्वना भावोने स्व, ने परना भावोने पर, एम स्व–परने अत्यंत
भिन्न जाणतां–मानतां परिणति स्वसन्मुख थईने सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थाय छे. महावीर
भगवाने आवा वीतरागविज्ञाननो उपदेश जगतने आप्यो. महावीर भगवाने शुं कह्युं? के स्व–
परनी भिन्नता बतावीने वीतरागविज्ञान करवानुं कह्युं. –आ ज भगवानना दिव्यध्वनिनो
सन्देश छे. ‘‘जय महावीर’’
प्रश्न : – जगतमां मैत्री कोनी करवी ?
उत्तर : – सिद्ध भगवंतोनी.
प्रश्न : – कोनी साथे किट्टा करवी ?
प्रश्न : – मिथ्यात्वादि परभावो साथे.
प्रश्न :– सिद्धप्रभु साथे मैत्री केवी रीते थाय?
उत्तर :– मित्रता सरखे सरखानी शोभे; एटले ‘जेवा सिद्ध तेवो
हुं’ एवो अनुभव करतां सिद्धप्रभु साथे मित्रता थाय, ने सादिअनंत
काळ सिद्धप्रभुनी साथमां रहेवानुं बने.
प्रश्न :– परभावो साथे कट्टी कई रीते करवी?
उत्तर:– हुं ने तुं जुदा, मारामां तुं नहि ने तारामां हुं नहि, एम
स्वभाव अने परभावनी अत्यंत भिन्नता अनुभवतां परभावो साथे
किट्टा थई जाय छे एटले के तेनी साथेनो संबंध सर्वथा छूटी जाय छे.
परभावो ते मारा स्वभावनी जात नथी पण कजात छे,
–कजात साथे मित्रता केवी ?