Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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सां....भ...ळो....!
जो तमे पोतानुं हित चाहता हो तो हे भव्य जीवो! श्रीगुरुना आ हितोपदेशने मन स्थिर
करीने तमे सांभळो. ‘हे भव्य जीवो ! हे मोक्षना लायक प्राणीओ!’ –आम उत्तम संबोधन
करीने भलामण करे छे के वीतरागविज्ञाननो आ उपदेश तमे ध्यानपूर्वक सांभळो; दुःखथी छूटवा
ने मोक्षसुख पामवा माटेनो आ उपदेश उपयोग लगावीने तमे सांभळो. तेनाथी जरूर तमारुं
हित थशे. बीजेथी उपयोग हठावीने आ तमारा हितनी वात प्रेमथी–उत्साहथी सांभळो.
श्री
गुणधर आचार्यदेवे कषायप्राभृत १०मी गाथामां सुण एवो शब्द मुक्यो छे, तेनो
अर्थ करतां जयधवला टीकामां श्री वीरसेनस्वामी लखे छे के ‘शिष्यने सावधान करवा माटे
गाथासूत्रमां जे ‘सुण एटले के सांभळ’ –एवुं पद छे ते एम बताववा माटे छे के अणसमजुं
शिष्यने व्याख्यान करवुं निरर्थक छे. (पृ. १७१) जेने समजवानी दरकार नथी एवा जीवने माटे
उपदेश नथी देता, पण जे समजवानी धगशवाळा छे एवा शिष्योने कहे छे के तमे सांभळो. जेम
पाणी जोईए तो ते माटे घरना गाय वगेरे पशुने ते नथी कहेता के पाणी आप; केमके तेनामां
तेवी शक्ति नथी. पण समजदार आठ वर्षना बाळकने पाणी लाववानुं कहेतां ते समजी जाय छे;
तेम आत्मानुं स्वरूप समजवानी जेनामां ताकात छे, जेनामां तेवी जिज्ञासा जागी छे एवा
जीवोने सन्तो तेनी वात संभळावे छे ने कहे छे के सुण! एटले के अमे जे भाव कहीए छीए ते
तुं लक्षमां ले. भाव समजे तो ज खरुं सांभळ्‌युं कहेवाय.
अहीं छढाळानी बीजी गाथामां पण कहे छे के तमारा हितनी वात सांभळो ‘‘सुनो भवि
मन थिर आन’’ हे भाई! दुःखथी छूटवानी ने सुखने पामवानी एवी तारा हितनी वात तने
कहीए छीए, तो तारा हित माटे सावधान थईने तुं सांभळ. आडी अवळी बीजीवात ने बीजा
विकल्पो छोडीने, आ वीतरागविज्ञाननी वात लक्षपूर्वक सांभळो. बीजा रस छोडीने आ
चैतन्यना वीतरागविज्ञानमां तत्पर थाओ.
जुओ तो खरा, सांभळनार श्रोताने पण केवी भलामण करी छे! अरे जीवो ! तमे
तमारुं कल्याण चाहता हो, हित चाहता हो, सुख अने मोक्ष चाहता हो तो तेेने माटे आ
वीतरागविज्ञाननो उपदेश अमारी पासे छे ते ध्यानपूर्वक सांभळो. बाकी संसारमां पैसा वगेरे
केम मळे के रोगादि केम मटे–एनो उपदेश अमारी पासे नथी; अमारी पासे तो सुखनो पोषक
एवो वीतरागविज्ञाननो ज उपदेश छे. तेनी जेने गरज होय ते सांभळो.
मात्र ‘सांभळो’ एम नहि पण स्थिर चित्त थईने सांभळो, ने हितना अभिलाषी थईने
सांभळो के अहो, आ मारा हितनी कोई अपूर्व वात छे.
(–छढाळा–प्रवचनोमांथी)