Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : ७ :
छे. अने रागादिमां तन्मयबुद्धिथी अज्ञानीने बधा अशुद्धपरिणाम ज थाय छे, ते
अज्ञानमय ज छे.
३प. ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणमनमां आ मोटो फेर छे. अज्ञानी भिन्नज्ञानने
भूलीने रागादि बंधभावना अनुभवमां ज अटकी जाय छे एटले तेने बंधन ज
ज थाय छे, शुद्धता जराय थती नथी. अने ज्ञानी तो रागथी भिन्न ज्ञानमय
भावमां परिणमतो थको मोक्षने साधे छे, तेने बंधन थतुं नथी, तेने शुद्धता थती
जाय छे. आ रीते ज्ञानीना बधा भावो ज्ञानमय छे; एनी ज्ञानचेतनानो कोई
अपार महिमा छे के जे मोक्षने साधे छे.
३६. ज्ञानचेतनामां अनंतगुणोनो रस समाय छे, ने छोडवा योग्य बधा भावो छूटी
जाय छे. –
जो अपना था सो रह गयाः जो दूसरा था सो छूट गया।
रहनेवाला रह गया; छूटनेवाला छूट गया.
३७. शुद्धस्वरूपना अनुभववडे चेतनाए सर्व कार्यसिद्धि करी लीधी छे. महा आनंदरूप
शुद्धस्वरूप प्राप्त थयुं – पछी शुं करवानुं बाकी रह्युं? शुद्धस्वरूपना अनुभवमां
ज्ञानी कृतकृत्य छे.
३८. मोक्षमार्ग अने मोक्ष बंने ‘ज्ञानचेतना’ मां समाय छे; साधकभाव ने साध्यभाव
बंने ज्ञानचेतनारूप छे. सम्यग्दर्शन ने मुनिपणुं पण ज्ञानचेतनामां समाय छे.
ज्ञानचेतनामां आत्माना सर्वे धर्मो समाय छे. ज्ञानचेतना वगर कोई धर्म होतो
नथी.
३९. अरहिंतदेव ज्ञानचेतनारूप छे, गुरु पण ज्ञानचेतनारूप परिणमेला छे; वीतरागी
– शास्त्रो पण ज्ञानचेतनारूप थवानुं ज उपदेशे छे. आवी ज्ञानचेतना पोतामां
प्रगट्या वगर देव–गुरु–शास्त्रनी खरी ओळखाण के उपासना थती नथी. पोतामां
ज्ञानचेतना प्रगट करे त्यारे ज ज्ञानचेतनारूप एवा देव–गुरु–शास्त्रनी खरी
ओळखाण थाय छे ने त्यारे ज तेमनी खरी उपासना थाय छे.
४०. रागमां ऊभेलो जीव ज्ञानचेतनाने नहि ओळखी शके. रागथी जुदो पडीने
शुद्धस्वरूपने चेतनारो जीव ज ज्ञानचेतनाने ओळखशे; ते पोते ज्ञानचेतनारूप
थईने ज्ञानचेतनाने ओळखे छे; अने ते ज ज्ञानीने ओळखे छे.
४१. ज्ञानचेतनाना आनंदनो परम स्वाद जेणे चाख्यो तेने जगतना बधा विषयो
अत्यंत नीरस भासे छे, तेमां क्यांय सुख देखातुं नथी.