Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
ज्ञानपरिणाम रागथी जुदा ने जुदा ज रहे छे. ज्ञान अने रागना स्वरूपनी आवी
भिन्नतानो निर्णय करतां पोतामां जरूर भेदज्ञान थाय छे.
२९. अज्ञानीने पर्यायेपर्याये रागादि बंधभावो साथे एकत्वबुद्धि छे, एटले तेना बधा
भावो अज्ञानमय छे. भिन्न ज्ञाननी तो तेने खबर नथी. अशुभ के शुभ बंने
भाव वखते अज्ञानी पोताने रागमय अशुद्ध ज देखे छे, एनाथी जुदुं स्वरूप एने
भासतुं नथी; तेथी तेने अज्ञानचेतना छे–अशुद्धचेतना छे.
३०. पापना अशुभ के पुण्यना शुभ ते बधा परिणामो ज्ञानमांथी उपजेला नथी पण
अशुद्धजातिमांथी ज उपज्या छे, एटले ते भावो ज्ञानमय नथी पण अज्ञानमय
छे, अशुद्ध छे. ज्ञानीने, शुभ–अशुभ वखतेय तेनाथी जुदी निर्मळ ज्ञानधारा
चाली रही छे; – तेथी तेने ज्ञानचेतना छे, शुद्धचेतना छे.
३१. शुभ के अशुभपरिणाम तथा ते संबंधी बाह्यक्रिया, तो अज्ञानीने होय, ज्ञानीने
पण होय, बंनेने एकसरखा जेवुं देखाय, पण ते ज वखते अंतरनी परिणाम
धारामां बंने वच्चे मोटो फेर छे. ज्ञानीनुं ज्ञान तो ते ज वखते रागादिथी वेगळुं
रहीने परिणमे छे, ने अज्ञानी रागादिमां तन्मयबुद्धिथी वर्ते छे; एटले ज्ञानी
ज्ञानमय परिणाममां अबंधपणे वर्ती रह्या छे, ने अज्ञानी रागादि बंधभावोमां
वर्ती रह्यो छे.
३२. ज्ञान ने रागनी भिन्नता पोताना लक्षमां आव्या वगर ज्ञानी अने अज्ञानीनो
फेर समजाय नहि. ज्ञानीने जे भेदज्ञान थयुं छे ते ज्ञान शुभाशुभ वखतेय खसतुं
नथी, शुभाशुभमां तेनुं ज्ञान भळी जतुं नथी पण भिन्न ज रहे छे. आवी
भिन्नतानुं भान ते ज्ञानचेतना छे; ने आवी ज्ञानचेतना बंधनुं कारण थती
नथी. ज्ञानीने ज आवी ज्ञानचेतना होय छे.
३३. निर्विकल्पता वखते ज धर्मीने ज्ञानचेतना होय ने अशुभ के शुभराग वखते ते
ज्ञानचेतना चाली जाय– एम नथी. चैतन्यस्वभावने अवलंबनारी ज्ञानचेतना
तेने सदाय वर्ते छे. राग वखते तेनी चेतना रागमय थई जती नथी, पण रागथी
भिन्न शुद्धात्माने चेतती थकी ते चेतना तो चेतनामय ज रहे छे. माटे ज्ञानीने
सदाय चेतनभावरूपी परिणाम वर्ते छे. ते भाव बंधनुं कारण नथी. ते
अबंधभाव छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे.
३४. अहो, चैतन्यस्वभावनो जेने प्रेम जाम्यो छे तेनां परिणाम तेवी जातनां ज होय
छे. द्रव्यनो एवो ज शुद्धस्वभाव छे के तेना आश्रये अशुद्धता ज परिणमे