: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : ५ :
२१. रागमां तन्मय परिणमतो अज्ञानी ज ते रागादिनो कर्ता छे. राग साथे
एकत्वबुद्धि होवाने लीधे तेना बधा परिणाम रागमय छे एटले अज्ञानमय छे,
रागथी भिन्न ज्ञानमय परिणाम अज्ञानीने होता नथी.
२२. आ रीते ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणमनमां मोटो तफावत छे. आ भेदने जे
ओळखे छे तेने ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान थईने ज्ञानमय परिणमन थया वगर
रहे नहीं.
ज्ञानीने रागथी भिन्न पोताना आनंदस्वभावने चेतनारी जे ज्ञानचेतना छे ते
मोक्षनुं कारण छे.
२४. आ ‘ज्ञानचेतना’ ज ज्ञानीनुं लक्षण छे. ज्ञानचेतना छे ते शुद्धआत्माना
अनुभवरूप छे. शास्त्रोना जाणपणा उपरथी ज्ञानचेतनानुं माप नथी, ज्ञानचेतना
तो अंतरमां आत्माना आनंदने चेतनारी छे.
२प. अज्ञानीने शास्त्रोनुं जाणपणुं होय तो पण तेने शुद्धात्माना वेदनरूप ज्ञानचेतना
नथी, तेना बधा परिणाम (शास्त्रनुं जाणपणुं पण) अज्ञानचेतनारूप छे.
२६. ज्ञानीने शास्त्रोनुं जाणपणुं भले वधतुं–ओछुं हो पण अंदर शुद्धआत्माने द्रष्टिमां
लईने तेनो आत्मा शुद्ध ज्ञानचेतनारूपे परिणमी रह्या छे; ते ज्ञानचेतनामां
अज्ञाननो अंश पण नथी.
२७. आवी ज्ञानचेतनामय ज्ञानीना परिणाम होवाथी तेना बधा परिणाम ज्ञानमय
छे. राग ते खरेखर ज्ञानचेतनाना परिणाम नथी, ते तो ज्ञानचेतनाथी बहार ज
छे. ज्ञानचेतना रागने नथी स्पर्शती, ज्ञानचेतना तो शुद्धआत्माने ज चेते छे.
अरे, आवी ज्ञानचेतनाने ओळखे तो तेना अपार महिमानी खबर पडे.
सम्यग्द्रष्टिना बधा परिणाम ज्ञानमय थाय छे. ज्ञानीनुं ज्ञान क्यारेय रागमय
थतुं नथी; एटले तेना ज्ञानपरिणाम कदी बंधनुं कारण थता नथी, अबंधस्वरूप
आत्मस्वभावमां एकपणे परिणमतुं ज्ञान बंधनुं कारण केम होय? –न ज होय.
२८. साधकदशामां जे अल्प रागादि छे तेमां तो ज्ञानीने ज्ञाननी तन्मयता नथी; तो
जेनी साथे तेने तन्मयता नथी पण भिन्नता छे ते बंधभावोने ज्ञानीनां परिणाम
केम कहेवाय? ते बंधपरिणामने धर्मीनी द्रष्टि पोतामां स्वीकारती नथी. तेना