: ४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
१३. शास्त्रना जाणपणारूप विद्वत्ता जुदी चीज छे ने ज्ञानचेतना जुदी चीज छे.
अज्ञानीने रागमां एकत्वबुद्धिने लीधे, शास्त्र तरफनुं जाणपणुं ते पण
अज्ञानचेतना छे. रागथी तेनी चेतना जुदी पडी नथी, ने ज्ञानस्वभावने तेणे
चेत्यो नथी (अनुभव्यो नथी) तेथी तेने ज्ञानचेतना नथी.
१४. शुद्धआत्माना समस्त गुण–पर्यायोमां चेतना रहे छे, ने तेनाथी अन्य कोई
भावोमां चेतना रहेती नथी.–आ रीते तेनामां अव्याप्ति के अतिव्याप्ति नथी,
जेम छे तेम यथार्थ निजस्वरूपने ते संचेते छे–अनुभवे छे.
१प. अहो, चैतन्य–परमेश्वरने चेतनाए पोतामां देखी लीधो....एटले ते परम
आनंदित थई....अनुभवरसनी खुमारीमां चेतना एवी मस्त थई के जगतमां
बीजा कोईनी आशा न रही.
१६. पोतामां निज परमेश्वरना दर्शनथी ज्ञानी–सम्यग्द्रष्टिने ज्यां भेदज्ञान थयुं,
चैतन्यभावने अने रागभावने स्वादभेद जाणीने भिन्न जाण्या, त्यां ते
सम्यग्द्रष्टिना परिणाम ज्ञानमय ज होय छे, रागमय परिणाम तेने नथी.
१७. प्रश्न :– ज्ञानीनेय चारित्रमोह वगेरेना उदयथी रागादि विचित्र परिणामे तो वर्ते
छे, छतां तेना परिणाम ज्ञानमय ज केम कह्या?
उत्तर :– भाई, ते रागना काळेय ज्ञानीनुं कांई रागमय थई गयुं नथी, ते तो
रागथी जुदुं ज ज्ञानस्वभावमां तन्मय वर्ते छे. माटे रागादि छे ते ज्ञानीनां
परिणाम खरेखर नथी, ज्ञानमय भाव ते ज ज्ञानीनां परिणाम छे.
१८. रागना काळे पण ज्ञानी तेने पोताथी भिन्नपणे जाणे छे, ने ते वखतना ज्ञानने
पोताथी अभिन्न जाणे छे. माटे ज्ञानमयपरिणाम ज ज्ञानीने छे, सम्यकत्व–ज्ञान–
आनंद ए बधा शुद्धपरिणामो ज्ञानमां समाय छे, पण रागादि अशुद्धपरिणामो
ज्ञानमां समाता नथी.
१९. अज्ञानीने राग वखते रागथी जुदुं ज्ञान भासतुं नथी, एटले ते तो पोताने
रागमय ज अनुभवे छे, एटले तेनो बधो अनुभव अज्ञानमय छे. आनंदस्वरूप
आत्मानुं भान नथी, वेदन नथी, एटले अज्ञानमय भावने ज ते वेदे छे. आ
रीते अज्ञानीना बधा भावो अज्ञानमय छे, ने ज्ञानीना बधा भावो ज्ञानमय छे.
२०. रागादिथी भिन्न परिणमतो ज्ञानी ते रागादिनो कर्ता केम होय ? ज्ञानमां तन्मय
परिणमतो ज्ञानी ज्ञाननो ज कर्ता छे.