: १० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
श्री गुरु जीवोने सुखकर उपदेश आपे छे
(२)
[छहढाळाना मंगलाचरणमां वीतरागविज्ञानने
नमस्कार कर्या छे, तेमां रहेला भावोनुं विवेचन आपे
अषाड मासना अंकमां वांच््युं; हवे श्रीगुरु भव्य जीवोने केवो
उपदेश आपे छे तेनी उत्थानिका आप आ प्रवचनमां
वांचशो, साथे साथे श्रोता–शिष्य केवो छे तेनुं पण विवेचन
वांचशो. –सं.]
जगतना जीवो दुःखथी भयभीत छे ने सुखने ईच्छे छे; तेथी जीवोनुं दुःख मटे
ने सुख थाय–एवो उपदेश श्रीगुरुए करुणा करीने आप्यो छे. श्रीगुुरुए शास्त्रमां जे
हितोपदेश दीधो छे ते–अनुसार आ छहढाळामां कहीशुं –
गाथा–१
जे त्रिभुवनमें जीव अनन्त, सुख चाहैं दुखतें भयवन्त्
तातैं दुखहारी सुखकार, कहें सीख गुरु करुणा धार ।। १ ।।
त्रण लोकमां सार वीतरागविज्ञान छे–एम बतावीने हवे ते वीतरागविज्ञान
प्रगट करवानो उपदेश आपे छे. त्रण लोकमां जे अनंत जीवो छे तेओ सुखने चाहे छे ने
दुःखथी डरे छे, तेथी तेमने सुख केम थाय ने दुःख केम टळे?–एवा मोक्ष मार्गनो
हितकारी उपदेश करुणाधारी श्रीगुरु आपे छे. मोक्षमार्ग कहो के वीतरागी विज्ञान कहो,
तेना वडे जीवोने सुख थाय छे ने दुःख मटे छे. तेथी ज्ञानी गुरुओए करुणा करीने
जीवोने तेनी शिखामण आपी छे, तेनो उपदेश आप्यो छे.
अरे, जीवो अज्ञानभावथी चार गतिना दुःखोमां तरफडी रह्या छे. ज्ञानी पोते
पूर्वे अज्ञानदशामां एवुं दुःख वेदी चूकया छे ने आत्मानुं साचुं सुख पण तेमणे चाख्युं
छे, तेथी जगतना जीवो उपर तेमने प्रशस्त करुणा आवे छे के अरे, अज्ञानना आ घोर
दुःखोथी जीवो छूटे ने साचुं आत्मसुख पामे. आवी करुणाथी, दुःखनुं कारण जे मिथ्यात्व
तेने छोडवानो अने सुखनुं कारण सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–