: १२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
जुओने, सुखने माटे जगतना जीवो केवा वलखां मारे छे! जाणे रूपियामांथी
सुख लई लउंं! जाणे रूपाळा शरीरमांथी के बंगलामांथी सुख लई लउं! एम बहारमां
वलखां मारे छे. अरे, घरबार छोडीने, शरीरने पण छोडीने (–आपघात करीनेय)
सुखी थवा ने दुःखथी छूटवा मांगे छे. भले एना ए उपायो साचा नथी, पण एटलुं तो
नककी थाय छे के जीवो सुखने चाहे छे ने दुःखथी छूटवा मांगे छे.
सुखने कोण न ईच्छे! सुखने न ईच्छे ते कां सिद्ध – वीतराग, कां नास्तिक अने
कां जड! एकेन्द्रियादि जीवोने भले मन के विचारशक्ति नथी, छतां अव्यक्तपणे पण
तेओ सुखने ज ईच्छे छे. ए प्रमाणे जगतना अनंता जीवोने सुखनी ज चाहना छे, ने
दुःखनो त्रास छे. सुखने चाहता होवा छतां, साचुं सुख कोने कहेवाय ने ते सुख केवा
उपायथी प्रगटे ते जाणता नथी. तेथी अहीं श्रीगुरु तेनो उपदेश आपे छे. गुरु एटले
दिगंबर आचार्य–सन्त ते अहीं मुख्य छे. ज्ञान–दर्शन–चारित्ररूपी गुणमां जे मोटा छे
एवा गुरुओए वीतरागविज्ञानरूप मोक्षमार्गनो उपदेश आपीने जगतना जीवो उपर
मोटो उपकार कर्यो छे. पोताने तेवो राग बाकी हतो ने जगतना जीवोनां भाग्य हता
तेथी कुंदकुंदादि गुरुओए जगतने मोक्ष मार्गनो परम हितकर उपदेश दीधो छे.
कुंदकुंदस्वामी पोते कहे छे के अमारा गुरुओए अनुग्रहपूर्वक अमने शुद्धात्मानो उपदेश
आप्यो हतो.... ते अनुसार हुं आ समयसारमां शुद्धात्मा देखाडुं छुं; तेने हे भव्यजीवो!
तमे स्वानुभवथी जाणो.
श्रीमद् राजचंद्रजी पण आत्मसिद्धिमां कहे छे के–
कोई क्रियाजड थई रह्या, शुष्क ज्ञानमां कोई;
माने मारग मोक्षनो, करुणा उपजे जोई.
अरे, बाह्य क्रियामां ने बहारना लुखा जाणपणामां जीवो धर्म एटले के
मोक्षमार्ग मानी रह्या छे, ते जोईने ज्ञानीने करुणा ऊपजे छे; तेथी तेमणे जगतने
साचो मोक्षमार्ग समजाव्यो छे. दुःख केम छे ? – के ‘जे स्वरूप समज्या विना पाम्यो
दुःख अनंत.’ भाई! तारा आत्मानुं स्वरूप न समजवाथी तुं अनंतदुःख पाम्यो....ते
स्वरूप श्रीगुरु तने समजावे छे... ते समज तो तारुं दुःख मटशे, ने तने परम आनंद
थशे. (समजाव्युं ते पद नमुं श्री सद्गुरु भगवंत.)
वाह! वीतरागमार्गी सन्तोए पोते मोक्षने साधतां साधतां जगतना जीवोने
पण हितनो उपदेश आप्यो छे : अरे प्राणीओ! तमारा हित माटे आत्मानुं स्वरूप तमे
समजो. पं. दौलतरामजी कहे छे के ए प्रमाणे श्रीगुरुओए आत्माना भला माटे जे
हितोपदेश आप्यो ते ज हुं आ छ–ढाळामां कहीश. भले आ शास्त्र नानुं