Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : १३ :
छे, पण तेमां उपदेश तो जे मुनिओए आप्यो छे ते–अनुसार ज हुं कहीश; एथी
विपरीत नहीं कहुं.
जे जीव गरजू थईने आव्यो छे, पोताना हित माटे धर्मनो जिज्ञासु थईने
आव्यो छे एवा जीवोने माटे आ वात छे. जेने पोताना हितनी कांई दरकार ज न
होय–एवा जीवोनुं तो शुं कहेवुं? पं. टोडरमल्लजी मोक्षमार्गप्रकाशकमां कहे छे के जे
धर्मना लोभी होय, धर्म समजवाना गरजवान होय एवा जीवोने आचार्य धर्मोपदेश
आपे छे. आचार्य मुख्यपणे तो निर्विकल्प स्वरूपाचरण विषे ज निमग्न छे, परंतु
कदाचित् धर्मलोभी वगेरे अन्य जीवोने देखी रागना उदयथी करुणाबुद्धि थाय तो तेमने
धर्मोपदेश आपे छे. आहा, ए सतोनुं मुख्य काम तो स्वरूपमां लीन थईने परमानंदने
साधवानुं छे, पण क्यारेक विकल्प ऊठतां धर्मोपदेश आपे छे.
अरे, आवा उपदेशदाता गुरुनो जोग मळवा छतां पण जे जीव ते उपदेश न
सांभळे एने तो आत्मानी दरकार ज नथी, संसारना दुःखनो एने हजी थाक नथी
लाग्यो. अहीं तो संसारथी थाकीने आत्मानी शांति लेवा चाहतो होय एवा जिज्ञासु
जीवोने माटे वात छे.
देहथी भिन्न आत्माने जाणनारा, ने रागथी भिन्न आनंदने अनुभवनारा
एवा वीतरागी मुनि, जेओ रत्नत्रयना धारक छे ने मोक्षना साधक छे, त्रण कषाय
चोकडीनो जेमने अभाव छे, प्रचुर वीतरागी स्वसंवेदन जेमने वर्ते छे, एवा गुरु
करुणा करीने ८४ लाख योनिना दुःखी जीवोने माटे हितनी शिक्षा एटले के शिखामण–
उपदेश आपे छे. –केवो उपदेश आपे छे? के दुःखनो नाश करनार अने सुखनी प्राप्ति
करावनार.
जुओ, आमां दुःखनो एटले विकारनो व्यय, ने आनंदनी उत्पत्ति–एवा उत्पाद–
व्यय आवी गया, ने दुःखथी छूटीने ते ज आत्मा सुखपर्यायमां कायम टकी रहे छे एवी
ध्रुवता पण आवी गई. अहो, वीतरागमार्ग अलौकिक छे. सन्तोने स्वसंवेदनरूप
वीतरागविज्ञान भले अधूरुं छे पण ते केवळज्ञाननी जातनुं छे, अधूरुं छतां राग
वगरनुं छे. आवा वीतरागी सन्तोए जगतने वीतरागतानी शिखामण आपी छे.
केवळज्ञानने साधनारा सन्तोए जे वीतरागविज्ञानरूप मोक्षमार्गनो उपदेश आप्यो छे
ते ज आ छ–ढाळामां संक्षेपथी कहेवाशे. एटले आ शास्त्र भले नानुं, पण प्रमाणभूत
छे. आ तो पाठशाळाना विद्यार्थीओने तेम ज घरे घरे शीखववा जेवुं पुस्तक छे. तद्न
सादी शैलिमां घणुं तत्त्व समजाव्युं छे.