: १४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
आ शास्त्रमां अने सर्वे वीतरागी शास्त्रोमां आत्माने सुख देनार ने दुःखथी
संसारमां भमतां अनंतकाळे मोंघुं एवुं संज्ञीपणुं जेने प्राप्त थयुं छे, अने तेमां
दुःखनो नाश, सुखनी प्राप्ति–बस, आमां मोक्षमार्ग आवी गयो. दुःखनुं कारण
त्रण लोकमां कोई जीवोने दुःख गमतुं नथी; दुःखथी बधा जीवो डरे छे. शुं
निगोदना जीवो पण दुःखथी डरे छे? –हा, अव्यक्तपणे ते पण दुःखथी छूटवा ज मांगे
छे. दरेक जीवनो स्वभाव ज एवो छे के सुख ज तेनुं स्वरूप छे, ने दुःख तेनुं स्वरूप
नथी. कोईवार अपमान वगेरेना दुःख आडे शरीर छोडीनेय ते दुःखथी छूटीने सुखी
थवा मांगे छे, शरीर रहित एकलो रहीनेय दुःखथी छूटवा मांगे छे, एटले शरीर वगर
एकलो आत्मा सुखी रही शके छे, तेथी साबित थाय छे के आत्मा पोते