Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
उत्तमक्षमा ग्रहो रे भाई!
पहेलां अज्ञानभूमिकामां श्रेणीकराजाए मुनिराजनी विराधना
करी हती... अनंतानुबंधी क्रोध कर्यो हतो.... मुनिराज तो ते वखते पण
क्रोधरहित क्षमाधर्मना आराधक हता..
पछी ज्यारे श्रेणीकने भूलनुं भान थयुं त्यारे पश्चातापथी क्षमा
मांगी; अनंतानुबंधी क्रोध छोडीने तेटला क्षमाधर्मनी उपासना करी;
विराधकभाव छोडीने आराधकभाव प्रगट कर्यो.अनंतानुबंधी
सिवायनो त्रिविधक्रोध हजी बाकी रह्यो,–पण ते क्रोधथी भिन्न एवा
ज्ञाननी आत्मअनुभूति थई–जे अत्यारे नरकमां पण तेमने वर्ते छे.
अल्पकाळमां तेओ ज्यारे मनुष्य थशे त्यारे ते अनुभूतिना बळे
बाकीना त्रिविधक्रोधने पण नष्ट करी, संपूर्ण क्षमाधर्मनी आराधनारूप
वीतराग थई तीर्थंकर परमात्मा थशे ... .ने उत्तम क्षमाधर्मने दिव्य
ध्वनिवडे जगप्रसिद्ध करशे.
जय हो ए उत्तम क्षमाधर्मनो.
आवी उत्तमक्षमा ग्रहो रे भाई!