Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
* एक ठकाणे बावीश मालधारी जुवानीया पोताना माल (गाय, भेंस, बकरा, ऊंट,
वगेरे) सहित मही नदीना रेतीना पटमां विश्राम लेता हता, त्यां तो पाणी आव्युं; वधवा
मांड्युं ते जुवानीयाओए बचवा माटे नजीकना टेकरा उपर आशरो लीधो....परंतु अशरणता
तो ए टेकरामांय हती....एटले ए टेकरो तेमने शरणरूप न थई शक्यो.....पाणीनुं धसमसतुं
पूर टेकरा उपरथी पण बार जुवानीयाने खेंची गयुं....ने तेमना गाममां एकसाथे केटलाय
जुवानजोधना मृत्युनी काण मंडाणी. –पण संसारनी क्षणभंगुरता सामे कोनुं चले ? –हा,
एक उपाय छे अने ते वीतरागता.ते ज जीवने शरणरूप थईने शाश्वतसिद्धपदमां बिराजमान
करे छे, ने क्षणभंगुर एवा जन्म मरणथी उगारे छे.
सुरत–भरूचनां पूर, के कोयनानो धरतीकंप, के कच्छनी विमान होनारत–ए बधा
प्रसंगोने तो दुनिया थोडा दिवसोमां ज भूली जशे....परंतु संसार पोतानी अनित्यताने अने
अशरणताने तो कदी छोडवानो नथी, –क्यारेक ते धरतीकंप द्वारा ने क्यारेक प्रलयकारी
पूरद्वारा, क्यारेक विमान अगर रेल्वेना अकस्मातद्वारा ने क्यारेक अणुबोंबना प्रहार द्वारा ते
पोतानी अनित्यता तथा अशरणता जगतने स्थूळरूपे देखाडे छे, –के जेथी जगत साव भूली
न जाय के आ बधुं क्षणभंगुर छे–ते कोई मने शरणरूप नथी. हे जीव! आ रीते संसारनी
क्षणभंगुरता अने अशरणता ओळखीने तुं तेनाथी बचवाना एकमात्र अमोघ उपाय तरीके,
ए बधा संयोगथी भिन्न तारा नित्य चिदानंदस्वरूपनुं शरण ले.
[आ जलप्रलयना संकटमां सपडायेला मानवो तेमज पशुओ प्रत्ये सहानुभूति ने
करुणा जागे छे. ता.१९ना रोज भावनगरथी कलेकटरश्री तेमज बीजा केटला आगेवानो
सोनगढ आवेला, दसेक मिनिट गुरुदेवना प्रवचनमां बेठेला; ने त्यारबाद मात्र दसेक
मिनिटमां आ रेलसंकटमां सहायनिमित्ते दसेकहजार रूा.नुं फंड थयुं हतु.]
ब्र.ह. जैन
आदर्श पुत्र.......आदर्श माता
पुत्र: हे माता!! आपना जेवी आत्महितनी मार्गदर्शक माता मने मळी...ते मारा धनभाग्य
छे. हे माता! तुं मारी छेल्ली माता छो. हवे आ संसारमां हुं बीजी माता करवानो नथी
संसारमां डुबेला आत्मानो हवे मारे उद्धार करवो छे...हे माता! आजे ज चारित्रदशा
अंगीकार करीने हुं समस्त मोहनो नाश करीश ने केवळज्ञान प्रगट करीश. माटे हे
माता! मने आज्ञा आपो!!
माता: अहो पुत्र! धन्य छे तारी भावनाने! जा. भाई खुशीथी जा अने पवित्र
रत्नत्रयधर्मनी आराधना करीने अप्रतिहतपणे केवळज्ञान पाम!!! पुत्र ! हुं पण
तारी साथे ज दीक्षा लईश. हवे आ भवभ्रमणथी बस थाव...हवे तो आ स्त्रीपर्यायनो
छेद करीने हुं पण अल्पकाळमां केवळज्ञान पामीश. [महाराणी चेलणा–नाटकमांथी]