Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 26 of 41

background image
: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : २३ :
ज्यारे राजगृहीमां महाराणी चेलणाने कयांय चेन
नथी पडतुं, ने अत्यंत उदास बेचेन रहे छे; त्यारे एकवार
अभयकुमार कहे छे के हे माता! आम सुनमुन बेसी रहेवा
करतां आपणे कांईक धार्मिकवार्ता करीए, जेथी मनमां
प्रसन्नता थाय. त्यारे चेलणा पण प्रसन्नताथी कहे छे के हा
पुत्र, तारी वात साची छे. दुःखसंकटमां धर्मनुं ज शरण छे.
आम कहीने पछी बंने जे धर्मचर्चा करे छे ते अहीं आपीए
छीए. एक आदर्श माता–पुत्र वच्चेनी आ चर्चा
जिज्ञासुओने गमशे. (सोनगढमां भादरवा सुद बीजे
बालिकाओए ‘‘महाराणी चेलणा’’ नुं सुंदर भाववाही
नाटक कर्युं हतुं, ते नाटकमांथी आ चर्चानो प्रसंग आप्यो
छे. पूरुं नाटक वाचवा माटे ‘‘महाराणी चेलणा’’ नुं
पुस्तक वांचो.)
अभयकुमार : माता! आपना जेवा धर्मात्मा उपर पण आवा संकट केम आवता हशे ?
चेलणा: पुत्र, पूर्वे जेणे देव–गुरु–धर्मनी कांईक विराधना करी होय तेने ज आवी
प्रतिकूळताना प्रसंगे आवे छे.
अभय : हें माता! प्रतिकूळसंयोगोमां पण जीव धर्म करी शके?
चेलणा : हा भाई! गमे तेवा प्रतिकूळ संयोग होवा छतां जीव धर्म करी शके छे;
बहारना कोई संयोग जीवने नडता नथी.
अभय : पण अनुकूळ संयोग होय तो धर्म करवामां ते कांईक मदद तो करेने!
चेलणा : नहि, भाई! धर्म तो आत्माना आधारे छे, संयोगना आधारे धर्म
नथी. संयोगनो तो आत्मामां अभाव छे.
अभय : तो बहारमां ने प्रतिकूळ संयोग केम मळे छे ?
चेलणा : ए तो आगला भवमां जेवो पुण्य–पापना भावो जीवे कर्यां होय तेवा
संयोग अत्यारे मळे छे. पुण्यना फळमां अनुकूळ संयोग मळे ने पापना
फळमां प्रतिकूळ संयोग मळे, –परंतु धर्म तो ते बंनेथी जुदी चीज छे.
अभय : माताजी! आ विचित्र संसारमां कोईवार अधर्मी जीवो पण सुखी देखाय
छे, ने कोईवार धर्मी जीवो पण दुःखी देखाय छे–तेनुं शुं कारण ?