Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : २५ :
• ज्ञाननी अनुभूति ते मोक्षमार्ग •
[साधक अने साध्य बंने ज्ञानमय छे....रागमय नथी]
[कलशटीका– प्रवचनो : कळश २६६–२६७]
जेवो ज्ञायक–चैतन्य आत्मा छे ते–मय तेनी अनुभूति छे, ने ते ज मोक्षामार्ग
छे. ‘ते–मय’ एटले जेवो स्वभाव छे तेवी ज जातनी पर्याय थई, तेमां रागादिनो
जराय अंश स्पर्शतो नथी. विकल्पनो अंश पण जेमां नथी एवी जे ज्ञायक स्वभावमय
अनुभूति छे, –ते मोक्षमार्ग छे. अधूरो ज्ञानमयभाव तेनुं नाम साधकदशा; ने पूर्ण
ज्ञानमयभाव ते साध्यरूप मोक्षदशा. –ते बंनेमां क्यांय राग नथी, राग जुदो रहे छे;
ज्ञानमय परिणतिमां तेनो अभाव छे.
मति–श्रुतज्ञान भले साधकरूप छे, पण ते राग वगरना छे; ते ज्ञान
आत्मस्वभावमय छे, आत्माने स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष करनारा छे. चेतना जेनुं सर्वस्व
छे एवा आत्माने धर्मी अनुभवे छे. ज्ञानमय भूमिकाना अनुभव वडे ज साध्य अने
साधकभावनी प्राप्ति थाय छे. आवी ज्ञानमय भूमिकाने पामेलो, एटले के
अनुभवदशाने पामेलो जीव प्रत्यक्ष शुद्धस्वरूपनो अनुभव करतो थको मोक्षने पामे छे.
आवा अनुभव वगरना जीवो चार गतिनां दुःखने ज पामे छे. आ रीते
शुद्धजीवस्वरूपनो अनुभव ते एक ज मोक्षनो मार्ग छे. मोक्षना मार्ग बे नथी एक ज
छे; मोक्षमार्गनां सम्यग्दर्शन बे नथी, एक ज छे.–शुद्धात्माने प्रतीतमां लेवो ते एक ज
सम्यग्दर्शन छे. ए ज रीते मोक्षमार्गमां सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र पण एक ज
प्रकारनुं छे, बे नथी. आ रीते शुद्धआत्माना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप एक ज साचो
मोक्षमार्ग छे. ने आवो मोक्षमार्ग ज्ञानमय आत्माना अनुभवमां समाय छे. आवा
अनुभव वडे ज दुःखनो नाश ने आनंदनी प्राप्ति थाय छे.
भगवान आत्मा, जेमां भव ने भवनो भाव नथी, तेने ज्ञानपर्यायमां ज्ञेय
बनावी, तेनो श्रद्धामां स्वीकार करी ने तेमां ज उपयोगने लीन करीने तेने ध्यावतां
मोक्षमार्ग अने मोक्ष थाय छे. मोक्षमार्ग कहो के वीतरागी अमृतनी शांतिनुं वेदन कहो!
रागनुं वेदन तो तेनाथी विरुद्ध छे, अशांत छे. शुभरागवडे साधकपणुं सहेलुं पडे–एम
नथी, ज्ञानना अनुभववडे ज साधकपणुं सहेलुं थाय छे, माटे कहे छे के–
लाख बातकी बात यह निश्चय उर लावो,
तोड सकल जग दंद–फंद जिन आतम ध्यावो.