: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : २७ :
‘अमारा भगवानने अमे ओळखीए छीए’
स्तुतिना एक संस्कृत श्लोकमां कोई अन्यमती स्तुतिकार कहे छे के ‘हे महान
ईश्वर! तमारुं स्वरूप केवुं छे ए तो हुं नथी जाणतो, पण तमे जेवा हो तेवा हुं तमने
नमस्कार करुं छुं.’
–परंतु, भगवान केवा छे ते ओळख्या वगर तेमने साचा नमस्कार क्यांथी थई शके?
वळी ते कहे छे के अमारा महान देव श्रेष्ठ छे, एनाथी श्रेष्ठ कोई देव नथी;
–परंतु पोते ज पोताना देवना स्वरूपने तो जाणतो नथी पछी तेनी श्रेष्ठतानी
क्यांथी खबर पडी? जे वस्तुने पोते जाणतो नथी तेनी बीजा साथे सरखामणी केम करी
शकाय? माटे देवनुं स्वरूप ओळख्या वगरनी स्तुति ते साची स्तुति नथी. हुं कोनी
स्तुति करुं छुं–ते जाण्या वगर साची स्तुति क्यांथी थाय?
भगवानने साक्षात् जोनारा श्री कुंदकुंदस्वामी तो कहे छे के जे जीव अरिहंतदेवनुं
स्वरूप जाणे छे ते पोताना आत्माने पण ओळखे छे, एटले तेने सम्यग्दर्शन थाय छे,
अने तेने ज भगवाननी खरी स्तुति होय छे.
भगवाननो ते भक्त निःशंक कहे छे के प्रभो! दुनियामां सौथी श्रेष्ठ एवा आपनुं
स्वरूप अमे ओळखी लीधुं छे, अने आपना जेवा ज अमारा आत्मानो पण अमे
साक्षात्कार कर्यो छे; एना बळे मोहनो नाश करीने अमे आपना मार्गे आवी रह्या छीए.
–आ छे प्रभुतानो पंथ!
• •
आद्य–स्तुतिकार समन्तभद्रस्वामी कहे छे के हे जिन! अमे आपने मात्र
बाह्यविभूति वडे ज महान नथी मानता, परंतु अंतरमां आपनी सर्वज्ञता
वीतरागता वगेरे गुणोने ओळखीने, अने आपनो ज उपदेश हितकारी छे एम
निर्णय करीने, तेना वडे अमे आपने महान समजीने पूजीए छीए. कोई जीव
वगर ओळख्ये साचा देवनी स्तुति करे तोपण तेने पोतामां श्रद्धा–ज्ञाननो लाभ
नथी थतो, तो पछी खोटा देवोने स्तवे एनी तो वात ज शी? सम्यग्द्रष्टि जीवो तो
परम निःशंकतापूर्वक कहे छे के अमारो ईष्ट सर्वज्ञ वीतराग परमदेवने अमे
आत्मसाक्षात्कारपूर्वक ओळख्या छे, अमे अमारा देवनो साक्षात्कार करी लीधो छे.