Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
बंधुओ, गया अंकमां दश नामोनी गोठवणी करवानो कोठो आपेल, तेमां तमने
बधाने सारो रस पड्यो ने नवुं जाणवानुं पण मळ्‌युं. हवे आ वखते बीजा प्रकारनी
कसोटी आपीए छीए; कदाच तमने जरा कठिन लागे, तो वडीलोने पूछीने जाणी
लेजो....आथी शास्त्रज्ञानमां तमने रस जागशे.
१. अरिहंतने ओळखतां आत्मा ओळखाय छे.
२. वीतराग–विज्ञान त्रण जगतमां साररूप छे.
३ सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे.
४ ‘हुं एक शुद्ध सदा अरूपी. ज्ञानदर्शनमय खरे.’
प. दंसणमूलो धम्मो = धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे.
६. ‘णमो जिणाणं....जिद भवाणं (भवने जीतनारा
जिनोने नमस्कार.)
७. जाणे–जुए जे सर्व, ते हुं–एम ज्ञानी चिंतवे.
८. ‘परमात्मप्रकाशमय नित्यं सिद्धातमने नमः’
९. णमो अरिहंताणं...णमो सिद्धाणं...णमो आइरियाणं...
१०. ‘अहो, अहो! श्री सद्गुरु करुणासिंधु अपार.’
[बंधुओ, अहीं दश शास्त्रोमांथी दश वाक्यो आप्यां छे; अने नीचे दश
शास्त्रोनां नाम आप्यां छे. तो कयुं वाकय कया शास्त्रनुं छे ते तमारे गोठवी देवानुं छे.]
षट्खंडागम, परमात्मप्रकाश, छहढाळा, प्रवचनसार, आत्मसिद्धि,
अष्टप्राभृत, मोक्षशास्त्र, नियमसार, पंचास्तिकाय, समयसार.