Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 36 of 41

background image
: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : ३३ :
आत्मानी वात
आ आत्मानी वात छे.
आत्माना अनुभवमांथी नीकळेली
छे. ने आत्माने ज समजावे छे.
–तो आत्माने आत्मानी वात केम न
समजाय ?
अमारो आत्मा केवडो ?
अनुभवमां जेटलो आव्यो तेटलो
अमारो आत्मा.
द्रव्य–पर्यायरूप शुद्ध वस्तुने
ओळखतां साचो अनुभव थाय छे.
चेतनभगवानना भेटा
आत्मा चेतनस्वभावी भगवान छे.
राग–विकल्प तो चेतनथी विरुद्ध जात छे.
तेना वडे चेतनभगवानना भेटा केम थाय?
चेतनभगवानना भेटा चेतनभाव
वडे थाय;
राग वडे न थाय.
अरे, अज्ञानथी मारे राग साथे
कर्ताकर्मपणुं छे, ते मने बंधनुं ने दुःखनुं
कारण छे; आम जाणीने तेनाथी छूटवानो
जे कामी थयो छे,तेने आत्मामांथी प्रश्न
ऊग्यो छे के प्रभो! अज्ञानथी थयेली आ
दोषप्रवृत्ति क्यारे आत्मा ज्ञानमय थईने
आनंदने अनुभवे ने बंधनथी छूटे?
आम जेने अंदरथी जिज्ञासाने प्रश्न
ऊठ्यो तेने आचार्यदेव कहे छे के सुण ...
सांभळ!
ज्यारे आ जीव आत्माना
ज्ञानस्वभावने अने रागादि आस्रवोने
जुदा ओळखीने भेदज्ञान करे छे त्यारे तेने
रागादि साथे कर्ताकर्मपणुं छूटी जाय छे, ते
पोतामां ज्ञानमयभावने ज करे छे. त्यारे
तेन ज्ञानमयपणाने लीधे बंधन थतुं नथी;
ज्ञान साथे आनंदनो अनुभव छे, पण
ज्ञान साथे दुःखनो अनुभव नथी.
मोंघुं तो खरुं ,–पण मळे तो छे!
* तमारामां तो सम्यग्द्रर्शन बहु मोंघुं
बतावो छो?
* भले मोंघुं, –पण मळे तो छेने!
बीजे तो सम्यग्दर्शन मळतुं नथी, सोंघुं
समजीने लेवा जाय तो साचो माल नहि
मळे पण बनावटी मळशे. साचुं
सम्यग्दर्शन मोंघुं तो छे ज, पण साचा
प्रयत्नवडे प्राप्त थई शके छे.