Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९४
चार रूपिया भादरवो
* वर्ष २५ : अंक ११ *
निजगुणनी प्राप्ति माटे भगवानने ओळखो
प्रभो! मोक्षमार्गना नायक छो तमे कर्मगिरिना भेदक छो;
अखिल विश्वना ज्ञायक छो प्रभु तमे ज वंदन लायक छो.
आप जेवा प्रभु गुण अमारा, हुं पण एने चाहुं छुं,
ते गुण – प्राप्ति हेतु जिनवर हुं फरी फरी तमने वंदुं छुं.
(पहेली चोपडीमांथी)
भाई, तारुं हित चाहतो हो तो भगवान अरिहंतदेव सिवाय
बीजा कोई देवने मानवानुं छोडी दे; हितनो साचो मार्ग देखाडनारा
भगवान अरिहंत ज छे. आवा वीतरागभगवानने छोडीने मोही
जीवोने कोणे भजे ? – जे तीव्र मोही होय ते भजे! पण जे विवेकी पोतानुं
हित चाहतो होय ते तो कोई कुदेवने भजे नहि. भाई! मोही जीवो तो
तारा जेवा छे, एने भजवाथी तो तारो मोह ज पुष्ट थशे... ने तुं
संसारमां डुबीश. अरे! तुं जे परम सुखरूप ईष्टपदने ईच्छे छे ते
ईष्टपदने पामेला जीव केवा होय तेने तो ओळख, तारा ईष्टदेवने तो
ओळख. पोताना ईष्टदेवने ज न ओळखे एनी मूर्खतानी शी वात!
देवगुरुधर्मनी ओळखाणमां जेनी भूल छे ने विपरीतने सेवे छे तेने
गृहीतमिथ्यात्व छे; अने ते गृहीतमिथ्यात्व टाळीने साचा देव–गुरुने पूजे
छतां जीवादि तत्त्वोना यथार्थ निर्णयमां जेने भूल छे तेने पण हजी
अगृहीतमिथ्यात्व छे. साचा देव–गुरु–धर्मने ओळखीने अने तेमणे कहेला
जीवादि तत्त्वोनुं यथार्थ स्वरूप ओळखीने श्रद्धा करतां; गृहीत अने अगृहीत
बंने मिथ्यात्व टळीने अपूर्व सम्यग्दर्शन थाय छे; ते महान कल्याणनुं मूळ छे.
माटे हे जीव! अरिहंतदेवने ओळख अने तेमणे दर्शावेला
तारा शुद्धात्मस्वभावने अनुभवमां ले...... तो तने तारा
सम्यकत्वादि निजगुणोनी प्राप्ति थशे.